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तीर्थकर भगवान महावीर 'देखा है मैंने पूर्ण चन्द्र राका में ।' 'वह नष्ट करेगा मोह तिमिर जीवन में॥'
___फिर इसके बाद सुहाया सपना रवि का।'
'वह ज्ञानालोक करेगा आशय जिसका ॥' 'तदनन्तर आया युगल मीन का सपना ।' 'लाएगा सुन्दर सौम्य भाग्य वह अपना ।' ___'फिर देखी जोड़ी भरे हुए कलशों की।'
वह प्यास बुझाएगा अशान्त तृषितों को ॥' 'पश्चात स्वप्न में आया स्वच्छ सरोवर।' 'पाएगा सर से सहस्राष्ट लक्षण वर ॥'
सब उत्कण्ठित से स्वप्न अर्थ यों सुनते।
सम्राट स्वयम् मन अमित मोद से भरते ॥ फिर स्वप्न कथन में हुई अग्रसर रानी। 'देखा लहराता निर्मल सागर पानी ॥'
उत्तर में बोले नप सुज्ञान के धारक ।
'तव सुत पयोध-सा होगा शान्त विचारक ।। "फिर स्वप्न-पटल पर दिखा सुभग सिंहासन ।' 'वह तीन लोक का पाएगा राज्यासन ।'
"फिर देव यान स्वप्नों में मुझे दिखाया।'
'चय स्वर्ग लोकसे तव सु-गर्म में आया।' 'तब दिखा नाग प्रासाद स्वप्न में क्रम से।' 'वह पूर्ण विज्ञानी होगा जन्म समय से ॥