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प्रथम सर्गः पूर्वाभास बन्दन-बारों चित्रों से हुमा प्रलंकृत ।
ताजी सुरभित पुष्पों से भी यह सज्जित ॥ स्वच्छता स्वयम् ज्यों वास यहाँ है करती। प्रति वस्तु नियत उपयुक्त स्थान पर रहती ॥
इस राज-भवन के बहिद्वार पर प्रहरी।
हैं खड़े कि जिन पर छाई निष्ठा गहरी।। हैं सावधान कर्तव्य कार्य में ये रत । क्या कर सकता कोईभी इनको बिचलित ॥
लो, लगा अभी दरबार पा गए कुछ जन ।
सुप्रतिष्ठित नागर जो सचमुच ही सज्जन ॥ मन्त्री, सेनापति अन्य कर्मचारी गण । मा गए सभी सम्राट सहित धीरज मन ||
जा पहुंचे जब अपने-अपने प्रासन पर ।
निज रत्न-जटित सिंहासन परभी नृपवर ।। वन्दीजन गाने लगे सुभग विरुदावलि । प्यों गुनन गुनन गुन गाती हो भ्रमरावलि ॥
इनके गाने के बीच वाद्य भी बजते ।
वादित्रों के स्वर रम्य रसीले लगते ॥ इनकी सरगम है परम मनोरम अनुपम । सङ्गीत स्वयम् साकार थिरकता क्रम-क्रम ॥
इस-गुण-गरिमा गायन के मधुरस क्रम में। आ गई स्वयम् साम्राज्ञी राज-भवन में ॥