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१८ तीर्थकर भगवान महावीर कागज और छपाई भी साधारणतया अच्छी है। पुस्तक को प्राकर्षक बनाने का पूरा प्रयत्न किया गया है । कवि का प्रयत्न सगहनोय है । आशा है कविता प्रेमी उसके इस प्रयत्न का समादर करेंगे।"
-श्री कैलाशचंद्र, शास्त्री साप्ताहिक 'शारदा' (वर्ष ६, अङ्क ६ : १६ सितम्बर
५६ ई०) फर्रुखाबादतीर्थङ्कर भगवान महावीर
_ "शास्त्रीय दृष्टिकोण से पुस्तक एक सफल महाकाव्य है। उसमें महाकाव्य के सभी गुण विद्यमान हैं । धार्मिक दृष्टिकोण से लेखक ने भगवान महावीर के गुणगान कर अपनी लेखनी को पवित्र किया है और जैन साहित्य के कोष की वृद्धि की है । जैन समाज में इस पुस्तक को वह स्थान प्राप्त हो सकता है जो हिन्दू समाज में गोस्वामी तुलसीदास जी के रामचरित मानस का है। छपाई सफाई सुन्दर एवं आकर्षक है । कई रंगीन चित्र भी हैं। अथक परिश्रम के लिये लेखक को बधाई।" -संपादक
-श्री चंद्रप्रकाश अग्रवाल, एम० ए०, एल०एल० बो० 'जैन-दर्शन' (वर्ष ६, अङ्क २८ : ता. १-७-५९)
शोलापूर"उदीयमान कवि भाई बोरेन्द्र प्रसाद जी ने भ० महावीर के जीवन परिचय को इस ग्रन्थ में कविताबद्ध किया है । "हृदय ग्राही है।" 'रसवंती' (वर्ष २; प्रङ्क १६ : जून १६५६) लखनऊ
.......""काव्य के कुछ स्थल मार्मिक हैं और उनसे कवि के उज्ज्वल भविष्य को सूचना मिलती है । ......."
[सम्पादक : डा. प्रेमनारायण टंडन]