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किसी के साथ कड़वा न बोलें, कवि से, विद्वान से विरोध न करें।
भाई पुरखराज जी (जेठमल सुकनराज वालों) की भावना के अनुसार - इस स्वरोदय विज्ञान के ग्रंथ के प्रत्येक पृष्ठ के शीर्षक में "प्रभु महावीर की अमृतवाणी ( Sayings of Lord Mahavira ) के एक-एक करके सुबोध वाक्यों को भी दे दिया है । इनका प्रत्येक पाठक को मनन पूर्वक पढ़कर जीवन में आत्मसात करने का प्रयत्न करना चाहिए तथा पहले के दो फर्मों (३२ पृष्ठों) के प्रत्येक पृष्ठ के शीर्षक में एक-एक नीति वाक्य भी दिये हैं जो प्रत्येक मानव के लिये उत्तम शिक्षाप्रद हैं ।
अन्तिम निवेदन
अष्टांग निमित्त का विषय अत्यंत उपयोगी होने से मैंने इस पर अपनी कलम से काम लिया है । तीस वर्षों के सतत परिश्रम से इसके चार विभाग प्रकाशित किये जा सकें :- इसमें पांच अंगों का समावेश है, बाकी के तीन अंगों में से लक्षण (सामुद्रिक - शरीर लक्षण ) विज्ञान भी तैयार हो चुका है । और बाकी के दो अंग भी तैयार किये जा रहे हैं ।
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उपर्युक्त चारों विभागों के प्रकाशन में भाई पुखराज जी तथा सरदारमल जी प्रेरणा तथा सहयोग ही मुख्य कारण हैं । यदि सच पूछा जाये तो इनके सक्रिय सहयोग तथा प्रेरणा के बिना न तो यह साहित्य प्रकाशन ही हो पाता और न ही इसका प्रचार और प्रसार । इनके सिवाय और भी जिन-जिन महानुभावों ने इस कार्य में मेरा हाथ बटाया है उनकी नामावली भी प्रश्नपृच्छा विज्ञान में दे दी है। उनके सहयोग के लिये उन्हें अभिनंदन देता हूं आशा करता हूं कि आगे के लिये भी सब जैन बंधु इस कार्य में मेरा - सहयोग देकर हाथ बटाते रहेंगे जिससे मैं इस वृद्धावस्था में जैन शासन की साहित्य सर्जन द्वारा अन्तिम श्वासों तक सेवा कर सकूं ।
वर्तमान समय में अष्टांग निमित का सांगोपांग हिंदी, गुजराती आदि लोक भाषाओं में प्रकाशन का अभाव ही है । इसलिये मैंने इसी विषय को लिखकर इस कमी को पूरा करने का प्रयास किया है । इसमें मैं कहां तक सफल हुआ हूं इसका विद्वर्य ही निर्णय दे सकते हैं । श्रधिक क्या लिखू ।
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