Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंगगमे वेयणाखंड
[१, २, ५, १. सुगर्म । सिया णोम-णोविसिट्ठा, णिरुद्धपदविसेसत्तादो । एवमजहण्णा णवभंगा दसभंगा वा| ९ । एसो पंचमसुत्तत्थो।
सादिया णाणावरणवेयणा सिया उक्कस्सा, सिया अणुक्कस्सा, सिया जहण्णा, सिया अजहण्णा, सिया अटुवा । ण [अणादिया] दुवा, सादियस्स अणादिय-धुवत्तविरोहादो। सिया ओजा, सिया जुम्मा, सिया ओमा, सिया विसिट्ठा, सिया णोम-णोविसिट्ठा एवं सादियवेयणाए दस भंगा एक्कारस भंगा वा १० ।। एसो छट्ठसुत्तत्थो ।
___ अणादियणाणावरणीयवेयणा सिया उक्कस्सा, सिया अणुक्कस्सा, सिया जहण्णा, सिया अजहण्णा, सिया सादिया । कधमणादियवेयणाए सादित्तं ? ण, वेयणाए सामण्णावेक्खाए अणादियम्मि उक्कस्सादिपदावेक्खाए सादियत्तविरोहाभावादो। सिया धुवा वेयणा, सामण्णस्स विणासाभावादो। सिया अदुवा, पदविसेसस्स विणासदसणादो । अणादियत्तम्मि सामण्णविवक्खाए समुप्पण्णम्मि क, पदविसेससंभवो ? ण, सगंतोक्खित्त. असेसविसेसम्मि सामण्णम्मि अप्पिदे तदविरोहादो । सिया ओजा, सिया जुम्मा, सिया है । कथंचित् वह नोम-नोविशिष्ट भी है, क्योंकि, यहां पदविशेषकी विवक्षा है। इस प्रकार अजघन्य वेदनाके नौ (९) या दस भंग होते हैं। यह पांचवें सूत्रका अर्थ है।
__ सादिकज्ञानावरणीयवेदना कथंचित् उत्कृष्ट, कथंचित् अनुत्कृष्ट, कथंचित् जघन्य, कथंचित् अजघन्य, और कथंचित् अध्रुव भी है। वह [अनादि व] ध्रुव नहीं है, क्योंकि, सादि पदके अनादि व ध्रुव होनेका विरोध है। कथंचित् वह ओज, कथंचित् युग्म, कथंचित् ओम, कथंचित् विशिष्ट और कथंचित् नोम-नोविशिष्ट भी है। इस प्रकार सादि वेदनाके दस (१०) भंग अथवा ग्यारह भंग होते हैं । यह छठे सूत्रका अर्थ है।
___अनादिज्ञानावरणवेदना कथंचित् उत्कृष्ट, कथंचित् अनुत्कृष्ट, कथंचित् जघन्य, कथंचित् अजघन्य और कथंचित् सादिक भी है।
शंका-अनादि वेदना सादि कैसे हो सकती है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, सामान्यकी अपेक्षा वेदनाके अनादि होनेपर भी उत्कृष्ट आदि पदविशेषों की अपेक्षा उसके सादि होने में कोई विरोध नहीं है।
कथंचित् वह वेदना ध्रुव है, क्योंकि, सामान्यका कभी विनाश नहीं होता। कथंचित् वह अध्रुव भी है, क्योंकि, पदविशेषका विनाश देखा जाता है।
शंका-सामान्य विवक्षासे अनादित्वके होनेपर पदविशेषकी सम्भावना ही कैसे हो सकती है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, अपने भीतर समस्त विशेषोंको रखनेवाले सामान्यकी विवक्षा होनेपर उसमें कोई विरोध नहीं है। ___ कथंचित् वह ओज, कथंचित् युग्म, कथंचित् ओम, कथंचित् विशिष्ट और
१ तापतौ ' वि णासाभावादो' इति पाठः ।
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