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संस्कृत-साहित्य का महत्त्व
के भी पृथक्-पृथक् अन्य पाये जाते हैं, जो वैज्ञानिक शैली से लिखे माये है।
(२) संस्कृत-साहित्य केवल विषय-व्यापकता के लिए ही नहीं,रचना. सौष्ठव के लिए भी प्रसिद्ध है। सूत्र-रचना से भारतीय लोग जगत् की सब जातियों में प्रसिद्ध हैं। भारतीयो द्वारा किये हुए पशु-कथाओं पक्षि-कथानों, अपसरा-कथाओ तथा गधमत्र श्राख्यायिकाओं के संग्रहों का भूमण्डल के साहित्य के इतिहास में बड़ा महत्त्व है " । प्रभु ईसा के जन्म से कई शताब्दी पूर्व भारत में व्याकरण के अध्ययन का प्रचार था; और व्याकरण व विद्या है, जिसमें पुरातन काल की कोई जाति भारतीयों की कक्षा में नहीं बैठ सकती। कोश-रचना की विद्या भी भारत में बहुत पुरानी है।
(६) धर्म एवं दर्शन के विकास के परिचय के लिए संस्कृत साहित्य का अध्ययन प्रायः अनिवार्य है। मकवानल ने लिखा है--"भारोपीय वंश की केवल भारत-निवासिनी शाखा ही ऐसी है, जिसने वैदिक धर्म नामक एक बड़े जातीय धर्म और बौद्ध-धर्म नामक एक बडे सार्वभौम धर्म की रचना की । अन्य शाखाओं ने इस क्षेत्र में मौलिकता न दिखलाकर बहुत पहले से एक विदेशीय धर्म को अपनाया। इसके अतिरिक्त भारतीयों ने स्वतन्त्रता से अनेक दर्शन-सम्प्रदायों को विकसित किया, जिनसे उनकी ऊँची चिन्तन-शक्ति का प्रमाण मिलता है।"
(७) संस्कृत साहित्य की एक और विशेषता इसकी मौलिकता है। ईसा के पूर्व चतुर्थ शताब्दी में यूनानियों का अाक्रमण होने से बहुत पहले आर्य-सभ्यता परिपूर्ण हो चुकी थी और बाद में होने वाली विदेशियों की विजयों का इस पर सर्वथा कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
१ विंटरनिट्ज कृत भारतीय साहित्य का इतिहास (इंग्लिश) प्रथम भाग । २. विंटरनिटज कत भारतीय साहित्य का इतिहास (इंग्लिश), प्रथम भाग।