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संक्षिप्त जैन इतिहास |
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हुआ था; किन्तु उसका अन्त परस्पर में सन्धि होकर होगया था । ' कहते हैं कि इसी सन्धिके उपरान्त श्रेणिकका विवाह कुमारी चेलनीके साथ हुआ था । सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार ने अपने बढ़ते हुए राज्यबलको देखकर ही शायद एक नई राजधानी - नवीन राजगृहकी नींव डाली थी । उनने अपने पड़ोसके दो महाशक्तिशाली राज्योंकौशल और वैशाली से सम्बन्ध स्थापित करके अपनी राजनीति कुशलताका परिचय दिया था इन सम्बन्धों से उनकी शक्ति और प्रतिष्ठा अधिक बढ़ गई थी। 3
आधुनिक विद्वानों का मत है कि सम्राट् बिम्बसारने सन् ई० से पूर्व ५८२ से १५४ वर्ष तक कुल २८ वर्ष राज्य किया था । किन्तु बौद्ध ग्रन्थोंमें उन्हें पन्द्रह वर्ष की अवस्था में सिंहासनारूढ़ होकर ५२ वर्ष तक राज्य करते लिखा है । (दीपवंश ३ - १६ - १० ) वह म० बुद्ध से पांच वर्ष छोटे थे । * फारस (Persia) का बादशाह दारा (Darias) इन्हींका समकालीन था और उसने सिंधुनदीवर्ती प्रदेशको अपने राज्यमें मिला लिया था । किन्तु दाराके उपरांत चौथी शताब्दि ई० ५० के आरम्भमें जब फारसका साम्राज्य दुर्बल होगया, तब यह सब पुनः स्वाधीन होगये थे । इतनेपर भी इस विजयका प्रभाव भारतपर स्थायी रहा । यहां एक नई लिपि
१-कार माइकल लेवचर्त, १०१८, पृ० ७४ । २ - अहि०, पृ० ३३ | ३- अव०, पृ० ४। ४- ऑहिइ०, पृ० ४५ ।
* मि० काशीप्रसाद जायसवालने श्रेणिकका राज्य कालं ५१ वर्ष ( ६०१-५५२ ई० पूर्व ) लिखा है। कौशांबीके परन्तप शताव्दिव आवस्तीके प्रसेनजी समकालीन राजा थे । जीव ओसो भा० १०४ ॥
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