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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
भगवान महावीर गृहस्थ दशा में तीस वर्षकी अवस्था तक भगवान महावीर रहे थे । उस समय शीलधर्मके प्रचारकी विशेष बालब्रह्मचारी थे । आवश्यक्ता जानकर उन्होंने विवाह करना स्वीकार नहीं किया था । वलिंगदेशके राजा जितशत्रु अपनी यशोदरा नामकी कन्या उनको भेंट करनेके लिए कुण्डपुर लाये भी थे; किंतु भगवान अपने निश्चय में दृढ़ रहे थे । वह बालब्रह्मचारी थे । किन्तु श्वेताम्बराम्नायकी मान्यता इसके विरुद्ध है । वह कहते हैं कि भगवान ने यशोदरासे विवाह कर लिया था और इस सम्बंध से उनके प्रियदर्शना नामकी एक पुत्री हुई थी । प्रियदर्शनाका विवाह जमालि नामक किसी राजकुमारसे हुआ था; जो उपरांत वीर संघमें संमिलित हो मुनि होगया था और जिसने महावीर स्वामी के विपरीत असफल विद्रोह भी किया था । विवाह आदि विषयक यह व्याख्या श्वेतांबरों के प्राचीन ग्रन्थ 'आचाराङ्गसूत्र' और 'कल्पसूत्र' में नहीं मिलती है और इसकी सादृश्यता बौद्धोंके म० बुद्ध के जीवनसे बहुत कुछ है । ऐसी दशा में उससमय में शीलधर्मकी आवश्यक्ताको देखते हुए भगवानका बालब्रह्मचारी होना ही उचित जंचता है ।
१- भमबु० पृ० ४२-४४ ।
३- श्वताम्बर शास्त्रों में भगवान महावीरका यशोदाके साथ विवाह करना और उनके पुत्री होना संभवतः सिद्धान्तभेदको स्पष्ट करने के लिये लिखा गया है; क्योंकि दिगम्बर जैन सिद्धान्तके अनुसार तीर्थकर भगवानकी पुण्यप्रकृतिकी विशेषता के कारण उनके पुत्रीका जन्म होना असम्भव है । ऋषभदेवजीके काटदोषसे दो पुत्रियां हुई थीं। इसी सिद्धान्तभेदको स्पष्ट करनेके लिये श्वेताम्बरोंने शायद भगवानका विवाह व पुत्री होना लिख दिया है; वरन् कोई कारण नहीं कि यदि भगवानका विवाह हुआ होता
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