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२९०] संक्षिप्त जैन इतिहास । लिपिमें हैं । भारतवर्षके प्राप्त लेखोंमें यह लेख सर्व प्राचीन समझे जाते हैं और इनसे उस समयके भारतकी दशाका सच्चा २ हाल प्रकट होता है । एक बड़े गौरव और महत्वकी बात यह मालम होती है कि 'उस समय पाश्चात्य लोग भी हमारे ही पूर्वनोंसे धर्मका उपदेश सुना करते थे।''
इन लेखोंके अतिरिक्त अशोकने स्तूप भादि भी बनवाये थे। उसके समय वास्तुविद्या और चित्रणकलाकी खूब उन्नति हुई थी। तबकी पत्थरपर पालिश करनेकी दस्तकारी विशेष प्रख्यात है । कहते हैं कि ऐसी पालिश उसके बाद आज तक किसी अन्य पत्थरंपर देखने में नहीं मिली है। अतएव कहना होगा कि अशोकके समय धर्मवृद्धि के साथ साथ लोगोंमें सुख-सम्पत्तिकी समृद्धि भी काफी हुई थी, क्योंकि विद्या और ललितकलाकी उन्नति किसी देशमें उसी समय होती है; जब वह देश सब तरह भरपूर और समृद्धिशाली होता है।
सम्राट अशोकने करीब ४० वर्ष तक अपने विस्तृत साम्राज्य अशोकका अन्तिम पर सुशासन किया था । और अन्तमें लगभग
जीवन । सन् २३६ ई. पू. वह इस असार संप्तारको छोड़ गये थे । बौद्धशास्त्रों में जो इनके अंतिम जीवनका परिचय मिलता है, उससे प्रकट है कि उस समय राज्यका अधिकार उनके पौत्र सम्प्रतिके हाथों में पहुंच गया था और वह मनमाने तरीकेसे धर्मकार्यमें रुपया खर्च नहीं कर मक्ते थे । कह नहीं सक्ते कि बौद्धोंके
१-भाप्रारा• भा० २ पृ० १२८-१२९ । २-भामारा०, भा० २
पृ० १३० ।
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