Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 312
________________ मौर्य साम्राज्य । इस कथनमें कहांतक सच्चाई है ? उनके ग्रन्थोंसे यह भी पता चलता है कि उनका एक भाई वीतशोक नामक तित्थियों' (नैनों) का भक्त था। वह बौद्ध भिक्षुओंको वासनासक्त कहकर चिढ़ाया करता था। अशोकने प्राणमय द्वारा उसे बौद्ध बनाया था। बौद्ध शास्त्रोंमें यह भी लिखा है कि अशोकने एक जैन द्वारा बुद्धमूर्तिकी अविनय किये जाने के कारण हनारों जैनोंको पुण्ड्वद्धन मादि स्थानोपर मरवा दिया था। पाटलिपुत्रमें एक जैन मुनिको वौड होनेके लिये उनने बाध्य किया था; किन्तु बौद्ध होनेकी अपेक्षा उन मुनि महाराजने प्राणों की बलि चढ़ा देना उचित समझा थ।। किन्तु बौद्धोंकी इन कथाओं में सत्यताका अंश विजकुछ नहीं प्रतीत होता है। सांचीके बौद्ध पुरातत्वसे प्रगट है कि ई० पू० प्रथम शता. न्दितक अविनयके भयसे म० बुद्धकी मूर्ति पाषाण में अकित भी नहीं की जाती थी। फिर भला यह तो असंभव ही ठहरता है कि अशोकके ममय म० बुद्धकी मूर्तियां मिलती हों। तिसपर अशोककी शिक्षायें उनको एक महान उदारमना राना प्रमाणित करती हैं। उनके द्वारा उक्त प्रकार हत्याकांड रचने की समावना स्वप्नमें भी नहीं की नासक्ती । बौद्धोंडी उक्त कथायें उसी प्रकार असत्य -अशोक० पृ. २५४ । २-दिव्यावदान ४२७-मंत्रु० पृ० ११४। ३-जैग• भा० १४ पृ० ५९। ४-जमीसो• भा० १७ पृ. २७२-पाणिनिसूत्रके पातअलि भाष्य (Goldstucker's Panini. p. 28) में मोर्चाको सुवर्ण मूर्तियां बनवाते और वेचते लिखा है। भाष्यने लिखा है कि क्षिक, स्कन्ध, विशाखकी मूर्तियां नहीं बेची जाती थी। और बौद्ध मतियां भी उस समय नहीं थी। मत: मोपा द्वाग बनाई गई मूर्तियां जैन होना चाहिये। इस तरह पातजलिभाधसे मी मोयों का न होना प्रकट है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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