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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
से २२८ तक राज्य करता रहा । कुणालका उत्तराधिकारी उसका भाई दशरथ हुआ। दशरथने सन् २२८-२२० ई.पु. तक शासनभार ग्रहण किया। उपरांत अशोकका पोता सम्प्रति राज्यसिंहासन पर बैठा । यह जैनधर्मानुयायी था और इसने जैनधर्म प्रचार दुरर देशोंमें किया था। श्वेतांबर शास्त्रोंका कथन है कि स्थूलभद्रस्वामीके उत्तराधिकारी श्री आर्य महागिरि थे। इनके गुरु भाई श्री आर्य मुहस्तिमूरि थे । सम्प्रतिकी राजधानी उज्जयनि थी। श्री आर्य सुहस्तिसुरिने यहां चातुर्मास किया था। चातुर्मासके पूर्ण होनेपर श्री जिनेन्द्रदेवका रथयात्रा महोत्सव होरहा था। संप्रति राना भी अपने राजप्रासादमें बैठा हुमा उत्सव : देख रहा था। भाग्यवशात् उसकी नजर श्री आर्य मुहस्तिसुरिपर जा पड़ी।
संप्रतिने गुरुके चरणों में जाकर प्रणाम किया और उनसे धर्मोपदेश सुनकर ब्रत ग्रहण किया। व्रती श्रावक होचुकनेपर संप्रतिने धर्म प्रभावनाकी भोर बड़ी दिलचस्पीसे ध्यान दिया। पहिले वह दिग्विजय पर निकला और उसने अफगानिस्तान, तुर्क, ईरान मादि देश जीते। मपनी दिग्विजयसे लौटनेपर संपतिने नैनधर्म प्रभावक भनेक कार्य किये । कहते हैं कि उसने सवालाख नवीन जैन मंदिर बनवाये, दो हजार धर्मशालायें निर्माण कराई, सवा करोड़ जिनबिम्बोंकी स्थापना कराई, ग्यारह हजार वापिका और कुण्ड खुदवाये तथा छत्तीस हजार स्थानोंमें जीर्णोद्धार करावा
१-परि• पृ. १४ व जैसासं• मा.१ पृ. ८-९ वीर वंशयहां संप्रतिको कौरवकुल मोरियवंशका लिया है। २-गुखापरिन. - ३।
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