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संक्षिप्त जैन इतिहास। ___ उधर विबुध श्रीधरकी कथासे नरवाहन रानाका जैन सम्बंध प्रगट है; जिसके अनुसार दिगम्बर जैन सिद्धांत ग्रन्थोंके उद्धारक मुनि भूतबलि नामक भाचार्य वही हुए थे। नहपानका एक विरुद 'भट्टारक' था और यह शब्द जैनोंमें रूढ़ है । तथापि नहपानके उत्तराधिकारियोंमें क्षत्रप रुद्रसिंहका जैनधर्मानुयायी होना प्रगट है। मतएव नरवाहनका नहपान होना और उन्हें जैनधर्मानुयायी मानना उचित प्रतीत होता है । इस अवस्था में पूर्वोक्त पहले दो मतोंके अनुसार वीर निर्वाण शकाब्दसे ४६१ वर्ष अथवा ६०५ वर्ष ५ माप्त पूर्व मानना ठीक प्रमाणित नहीं होता; क्योंकि जैन शास्त्रोंका शकराना शक संवतका प्रवर्तक नहीं था, वह नहपान था।
तीप्तरा मत प्रो० नॉल चारपेन्टियरका है; जिसका स्थापन निर्वाणकाल ई. . उन्होंने 'इन्डियन एन्टीक्वेरी' भा० ४३
४६८ नहीं होसक्ता। में किया है। उनके मतसे वीर-निर्वाण ई० पू० ४६८में हुआ था। उनने अपने इस मतको पुष्टि में पहले ही दिगम्बर और श्वेताम्बरोंके उस मतके निरापद होने में शङ्का की है, जिसके अनुसार सन् ५२७ ई. पूर्व वीरनिर्वाण माना जाता है। किन्तु इसमें जो वह दिगम्बरोंके अनुसार विक्रमसे ६०५ वर्ष पूर्व वीरनिर्वाण बतलाते हैं, वह गलत है। किसी भी प्राचीन दिगम्बरग्रंथमें विक्रमसे ६०५ वर्ष पहले वीर निर्वाण होना नहीं
१-सिद्धांतसारादि संग्रह, पृ. ३१६-३१८ । २-राइ०, पृ० १०३ । ३-इंऐ०, भा० २० पृ० ३६३ । ४-त्रिलोकसार गा० ८५०-त्रिलोकसारके टीकाकार एवं उनके बादके लोगोंको शकराजासे मतलब विक्रमादित्यसे भ्रमवश था। असल में वह नहपानका द्योतक है।
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