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मौर्य साम्राज्य । [२५५ नेनोंको भी भुलाया नहीं था, यह बात उसके शिलालेखोंसे स्पष्ट है। प्रो. कनके समान बौद्ध धर्मके प्रखर विद्वान् अशोकका जैन
होना बहुत कुछ संभव मानते हैं और मि० अजैन साक्षी।
टॉमसने तो जोरोंके साथ उनको जैन धर्मानुयायी प्रगट किया है। मि. राइस और प्राच्य विद्या महार्णव पं० नागेन्द्रनाथ वसु भी अशोकको एक समय जैन प्रगट करते हैं। यह बात भी नहीं है कि केवल आधुनिक विद्वान ही अशोकको पहिले जैनधर्मका श्रद्धानी प्रगट करते हों; बलिक मानसे बहुत पहिलेके भारतीय लेखक भी उनका जैनी होना सिद्ध करते हैं। 'रानतरिग्रणी में लिखा है कि अशोकने जिन शासनका उद्धार या प्रचार काश्मीरमें किया था। 'मिनशासन' स्पष्टतः जैनधर्मका द्योतक है; किन्तु विद्वान् इसे बौद्ध धर्मके लिये प्रयुक्त हुमा बतलाते हैं। हमारी समझसे "बौदधर्म" में 'निन' शब्दका व्यवहार अवश्य मिलता है किन्तु जैनधर्ममें जैसी प्रधानता इस शब्दको मिली हुई है, वैसी बौद्ध धर्ममें नहीं। इस शब्दकी अपेक्षा हो जब जैनधर्मका नामकरण हुमा है, तब वह शब्द इसी धर्मका द्योतक माना जा सक्ता है। रानतरिङ्गणी' में अन्यत्र काशमीरके राना मेघवाहनको
१-जमीयो० भा० १७ पृ. २१५ । २-ऐ० मा. २. पृ० १४३। -जगएसो. भा. ९ पृ. १५५-९१ । ४-मैसूर एण्ड कुर्ग देखो। ५-हिवि० भा० २ पृ. ३५० ।
-'यः धान्तवृजिनो राजा प्ररमो जिनशासनम् ।
शुष्पोऽत्र वितस्तात्री वस्तार तूरमाले ॥राजरिंगणी..
७-रिक्या मा० ३ पृ. ४०५-०७६ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com