________________
२५६] संक्षिप्त जैन इतिहास। जैनोंके समान हिंसासे घृणा करनेवाला लिखा है।' इस उल्लेखसे स्पष्ट है कि कवि कल्हणके निकट 'जिन' शब्द नैनोंके अर्थमें महत्व रखता था।
अबुरफनलने 'आइने मकबरी' में जो काश्मीरका हाल लिखा है, उससे भी इस बातका समर्थन होता है कि अशोकने वहां जैनधर्मका प्रचार किया था। अबुलफनलने 'जैन ' शब्दका प्रयोग अशोकके संबन्धमें किया है और भगाड़ी "बौद्ध" शब्दका प्रयोग बौद्धधर्मके वहांसे अवनत होनेके वर्णनमें किया है। इस दशामें अशोकका प्रारम्भमें जैनमतानुयायी होना संभव है। श्रवणबेलगोलमें जो राजा जैनमंदिर बनवा सक्ता है, वह जैनधर्मका प्रचार काश्मीरमें भी कर सक्ता है । अशोक स्वयं कहता है कि उसके पूर्वजोंने धर्मप्रचार करनेके प्रयत्न किये, पर वह पूर्ण सफल नहीं हुए। अब यदि अशोकको बौद्धधर्म अथवा ब्राह्मणमतका प्रचारक मानें तो उसका धर्म वह नहीं ठहरता है जो उसके पूर्वजोंका था । सम्राट् चंद्रगुप्तने जैन मुनि होकर धर्म प्रचार किया था। इस दशामें अशोक भी अपने पूर्वनों के धर्मप्रचारका हामी प्रतीत होता है । जिस धर्मका प्रचार करने में उसके पूर्वज असफल रहे, उसीका प्रचार अशोकने नये ढंगसे कर दिखाया और अपनी इस सफलता पर उसे गर्व और हर्ष था।
वह केवल साम्प्रदायिकतामें संलग्न नहीं रहा-उदारवृत्तिसे उसने सत्यका प्रचार मानवसमाजमें किया। प्रत्येक मतवालेको
१-राजतरिंगणी अ० १ इलो०७२ व अ० ३ श्लो० ७॥ २-जराएसो० भा• १ पृ. १८३ । ३-प्रप्तमस्तंभलेख-अघ० पृ० ३७।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com