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संक्षिप्त जैन इतिहास |
हैं कि पिंजरापोल संस्थाका जन्म जैनोंद्वारा हुआ है और आज भी जैनोंकी ओर से ऐसी कई संस्थायें चल रही हैं ।' अशोकने कई वार जैनोंकी तरह 'अमारी घोष' ( अभयदानकी घोषणा ) कराई थी । सारांश यह है कि अशोकको पशुरक्षाका पूरा ध्यान था । कोई विद्वान् कहते हैं कि पशुरक्षाको उसने इतना महत्व दिया था कि उसके निकट मानवसमाजकी भलाई गौण थी । यह ठीक वैसा ही लाञ्छन है जैसा कि आज जैनोंपर वृथा ही आरोपित किया जाता है; किन्तु इसे अशोककी प्रवृत्ति जैनोंके समान थी, यह प्रकट होता है । अशोकने मानवोंकी भलाई के कार्य भी अनेक किये थे । उनकी जीवनयात्रायें धार्मिक कार्यो को करते हुए व्यतीत हों, इसलिये अशोकने उनको धर्मशिक्षा देनेका खास प्रबन्ध किया था । प्राणदण्ड पाये हुये केद्रीके जीवनको भी भविष्य में सुखी बनानेके लिये उनने उमको धर्मोपदेश मिलनेका प्रबन्ध किया था । कृतपापके लिये पश्चाताप और उपवास करनेसे मनुष्य अपनी गति सुधार सक्ता है । जैनधर्म में इन बातोंपर विशेष महत्व दिया गया है ।
अशोक भी इन हीकी शिक्षा देता था । उसने केवल मनुव्यके परभवका ही ध्यान नहीं रखा था । वह जानता था कि धर्म पारलौकिक और लौकिक के भेदसे दो तरहका है। एक श्रावके लिये यह उचित है कि वह दोनोंका अभ्यास सुचारु रीतिसे करे । अशोकने अपनी शिक्षाओंसे धर्मके इस भेदका पूरा ध्यान वखा ।
१- मैं अशो० ० पृ० ४९-५० । २-अघ० पृ० १६३-१६७ - पंचम विलालेख । ३ - अध० १० १३९ । ४-अध० १० ३१० - प्रथम स्तम्भ लेख |
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