________________
२७८ ]
संक्षिप्त जैन इतिहास |
हमारी मान्यता में कुछ बाघा नहीं माती; अशोकका नामोल्लेख तक जैन शास्त्रोंमें न होता तो भी कोई हर्ज ही नहीं था । क्योंकि हम जानते हैं कि पहिलेके जैन लेखकोंने इतिहासकी ओर विशेष रीतिसे ध्यान नहीं दिया था । यही कारण है कि खारवेल महामेघवाहन जैसे धर्मप्रभावक जैन सम्राट्का नाम निशान तक जैन शास्त्रोंमें नहीं मिलता । अतः अशोकपर जैनधर्मका विशेष प्रभाव जन्मसे पड़ा मानना और वह एक समय श्रावक थे, यह प्रगट करना कुछ अनुचित नहीं है। उनके शासनलेखोंके स्तम्भ आदिपर जैन चिह्न मिलते हैं । सिंह और हाथीके 1 चिह्न जैनोंके निकट विशेष मान्य हैं। अशोकके स्तंभोंपर सिंहकी मूर्ति बनी हुई मिलती है और यह उस ढंगपर है, जैसे कि अन्य जैन स्तम्भों में मिलती है। यह भी उनके जैनत्वका द्योतक है ।
किंतु हमारी यह मान्यता आजकलके अधिकांश विद्वानोंके अशोकको बौद्ध मानना मतके विरुद्ध है । आजकल प्रायः यह ठीक नहीं है । सर्वमान्य है कि अशोक अपने राज्यके नवे वर्षसे बौद्ध उपासक हो गया था। किंतु यह मत पहिलेसे
२
१- ये दोनों क्रमश: अन्तिम और दूसरे तीर्थदूरोंके चिन्ह है और इनकी मान्यता जैनोंमें विशेष है । ( वीर• भा० ३ पृ० ४६६-४६८ ) मि० टॉमॅसने भी जैन चिन्होंका महत्व स्वीकार किया है और कुहाऊंके जैन स्तंभपर सिंहकी मूर्ति और उसकी बनावट अशोक के स्तम्भों जैसी बताई है । ( जराएसो० भा० ९ पृ० १६१ व १८८ फुटनोट नं० २ ) तक्षशिला के जैन स्तूपोंके पाससे जो स्तंभ निकले है उनपर भी सिंह है। (तक्ष० पृ० ७३) श्रवणबेलगोल के एक शिलालेखके प्रारम्भमें हाथीका
चिन्ह है । २ईऐ० भा० २० पृ० २३० ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com