Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 300
________________ . मौर्य-साम्राज्य । [२७९ ही अशोकके बौद्धत्वको वास्तविक मानकर विहानोंने स्वीकार किया है, वरन् ऐसा कोई स्पष्ट कारण नहीं है कि उन्हें बौद माना जावे । यह मत नया भी नहीं है। डॉ० फ्लीट, मि० मेकफैल, मि• मोनहन और मि० हेरसने अशोकको बौद्ध धर्मानुयायी प्रगट नहीं किया था । डॉ. कर्न' और डॉ० सेनार्ट व हल्श सा. भी मशोकके शासन लेखोंमें कोई बात खास बौद्धत्वकी परिचायक नहीं देखते हैं, किंतु वह बौद्धोंके सिंहलीय ग्रंथोंके आधारपर अशोकको बौड हुमा मानते हैं । और उनकी यह मान्यता विशेष महत्वशाली नहीं है क्योंकि बौद्धोंके सिंहलीय अथवा ४ थी से ६ ठी श० तकके अन्य ग्रन्थ काल्पनिक और अविश्वसनीय प्रमामित हुये हैं। तथापि रूपनाथके प्रथम लघु शिलालेखके आषारसे जो अशोकको बौद्ध उपासक हुमा माना जाता है, वह भी ठीक नहीं है क्योंकि बौद्ध उपासकके लिये श्रावक शब्द व्यवहृत नहीं होसका है जैसे कि इस लेख में व्यवहृत हुआ है। बौद्धोंके निकट श्रावक शब्द विहारों में रहनेवाले भिक्षुओं का परिचायक है। और उपरोक्त लेख एवं अन्य लेखोंसे प्रकट है कि अशोक उससमय एक उपासक थे। १-जराएपो, १९०८, पृ० ४९१-४९२ । २-अशो० पृ. ४८ । ३-भी हिस्ट्रो आफ बंगाल पृ. २१४ । -जमीसो० मा० १७ पृ. २७१-२७५ । ५-मेबु० १० ११२ । ६ऐ० मा० २० पृ० २६० । U-C. J. J. I. p. XIX अमीसो. मा. १. पृ. २१। ८-शो. पृ. १९१ २३; भामचो. पृ. ९६और मैनु. पृ. ११०। ९-अप० पृ. ६९।१०-ममबु. मृमिका • १२ । "-अप. पृ. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322