Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 302
________________ मौर्य-साम्राज्य । [२८१ शिलालेख यद्यपि बौदसंघमें हो आनेके बाद लिखा गया है; परन्तु उसमें कोई भी ऐसी शिक्षा नहीं है जो बौद्ध कही जासके। दूसरे वैराटवाले शिलालेखके अनुसार तो अशोकको बौद्ध हुआ ही प्रकट किया जाता है। किन्तु वह सर्व प्रनाको लक्ष्य करके नहीं लिखा गया है। यदि वस्तुतः अशोक बौद्ध हुये थे तो वह अपने इस श्रद्धानका प्रतिघोष सर्वसधारणमें करते और उनके लेखमें बौद्धशिक्षाका होना लाजमी था। फिर उनके बौद्ध हो जानेपर यह भी संभव नहीं था कि वह उन मतवालों-जैसे ब्राह्मणों, जैनों, मानिविक मादिका सत्कार कर मके, जिनका बौडग्रन्थों में खासा विरोध किया गया है। वैराट शिलालेख केवल बौद्ध संघको लक्ष्य करके लिखा गया है और उममें अशोक संघको अभिवादन करके जो यह कहते हैं कि 'हे भदन्तगण, भापको मालूम है कि बुद्ध धर्म और संघमें हमारी कितनी भक्ति और गौरव है' वह ठीक है । यह एक सामान्य वाक्य है, इसमें किसी पार्मिक श्रद्धानको व्यक्त नहीं किया गया है। अशोकके समान उदारमना राजाके लिये यह उचित है कि वह जब एक संप्रदायविशेषके संघ अपने मतको मान्यता दिलाना चाहता है, तो वह शिष्टाचारके नाते उनका समुचित आदर करे और विश्वास दिलावे कि वह उनके मतके विरुद्ध नहीं है । अशो. कने यही किया था । उनने यह नहीं कहा था कि हमें बौदधर्मविश्वास है और हम उममें दीक्षित होते हैं। शिष्टाचारकी पूर्ति के उनने संघको बौदधर्मके उन स्वास ग्रन्थोंकि मध्ययन व प्रचार रनेत्र परामर्श दिया, में उनके मतके अनुकूल थे क्योंकि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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