Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 290
________________ मौर्य-साम्राज्य । [ २६९ (७) कल्प शब्दका व्यवहार पंचम शिलालेखमें हुमा है। जनोंकी कालगणनामें कल्पकाल माना गया है।' (८) एक देश शब्द सप्तम शिलालेखमें मिलता है । जैनधर्ममें भी भांशिक धर्मको एक देश धर्म बताया गया है ।। (९) सम्बोधिका प्रयोग अष्टम शिलालेख में है। जैनशास्त्र में बोधि सम्यग्दर्शनकी प्राप्तिको कहा गया है। (१०) वचन गुप्तिका उपदेश बारहवें शिलालेखमें है कि अपने धर्मसे भिन्न धर्मों के प्रति वचन गुप्ति का अभ्यास करो, निमसे परस्पर ऐक्यकी बढ़वारी हो । गुप्ति नैनधर्ममें तीन मानी गई हैं(१) मनगुप्ति (२) वचनगुप्ति और (३) कायगुप्ति ।' अन्यत्र यह भेद नहीं मिलता है। (११) समबायका व्यवहार भी बारहवें शिलालेखमें है। जैन द्वादशांगमें एक अंग अन्यका नाम 'समवायांग' है।' (१२) वेदनीय शब्द त्रयोदश शिलालेखमें मशोकने दुःख प्रकाशके लिये प्रयुक्त किया है। जैनधर्म में भी वेदनीय शब्द दुःख मुखका द्योतक माना गया है और आठ कर्मों में एक कर्मका नाम है।' .. जो समो सबभुदेसु तसेसु थावांसुय । जस्स रागो य दोमो य वि िण जणेति दु ॥५२६॥ मला• । १-" पयर्यालयमाणमाओ पयलियमिच्छत्तमोहसमचित्तो । पावह तिहुवणपा वोही जिणसासणे जीवो ॥७॥'-अष्ट० पृ. २१५ २-पुरुषार्थसिद्धयुपाय ४१७ । 3-'सेप भवमयमहणी बोधी ।'-मूठा• पृ. २७७ ४-मूत्राचार पृ० ११५ व तत्वावं. पृ. १७५-१.६।५-तत्वा विगमसूत्र, पृ. ३.। ६-तत्वाधिगमसूत्र, पृ. १६.। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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