Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 296
________________ मौर्य साम्राज्य | [ २७५ उन्होंने इम अभावकी पूर्तिके सदप्रयत्न किये और लोगोंको देवयोनिके अस्तित्वका पता बतानेका प्रयत्न किया । देवतालोग स्वयं तो आ नहीं सक्ते थे । अतएव अशोकने उनके प्रतिबिम्ब लोगोंको दिखाये | 1 विमान दिखलाकर वैमानिक देवताओंका दिव्यरूप लोगोंको दर्शा दिया ! इन देवताओंके इन्द्रका ऐगवत हाथी जैन लोगों बहुप्रसिद्ध है । जब तीर्थंकर भगवानका जन्म होता है तब इन्द्र इमी हाथीपर चढ़कर आता है । आजकल भी जैन रथयात्राओंमें काठ वगैरह बने हुए ऐसे ही हाथी निकाले जाते हैं । अशोक ने भी ऐसे ही हाथी जलममे दिखाये थे । 'अग्नि- स्कंष' दिखलाकर अशोकने ज्योतिषी देवोंके अस्तित्वका विश्वाम लोगों को कराया प्रतीत है; क्योंकि इन देवोंका शरीर अग्नि के समान ज्योति 5 X मैय होता है । शेषमें भवनवामी देव रह गये | अशोकने इनके दर्शन भी लोगों को अन्य दिव्यरूप दिखलाकर करा दिये थे। सारांशतः अशोककी यह मान्यता भी जनोंकी देव योनिके वर्णन से टी समानता रखती है । इससे यह भी पता चलता है कि अशोकको ' मूर्तिपूजा' से परहेज नहीं था। जैनों के यहां तीर्थंकर भगवानकी मूर्तियां स्थापित करके पूजा करनेका रिवाज बहुप्राचीन है । (८) अशोक सब धार्मिक कार्यों का फल स्वर्ग-सुखका मिलना बतलाता है । उसने मोक्ष अथवा निर्वाणका नाम उल्लेख भी नहीं किया है। बौद्ध दर्शन में 'निर्वाण' ही जीवन अथवा अर्हतु पदका अंतिम फळ लिखा गया है; किन्तु अशोक उसका कहीं नाम भी १- अध० पृ० १४६ –पंचमशिला २-हरि० १० ११ । ३-अध० पृ० १४७ । ४- तत्वार्थ० ४। १ । · Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat I www.umaragyanbhandar.com

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