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मौर्य साम्राज्य |
[ २५३ अशोक बौद्ध न होकर जैन थे, इसलिये बौद्धोंने उनको दुष्ट लिखा है ।
किन्हीं लोगों का कहना है कि पहिले अशोक मांसभोजी था । अशोक प्रारंभ में उसकी भोजनशाला में हजारों जानवर मारे जाते जैनी था । थे ।' एक जैनके लिये इस प्रकार मांसलोलुपी होना जी को नहीं लगता और इसीसे विद्वानोंने उसे शैव धर्मानुयायी प्रकट किया है । किन्तु इस उल्लेखसे कि अशोक के राज घराने की रसोई में मांस पकता था, यह नहीं कहा जासक्ता कि अशोक के मांसभोजी था । संभव यह है कि अन्य मांसभोजी राजवर्गके लिये ऐसा होता होगा | जन्मसे जैनी होनेके कारण अशोकका मांसभक्षी होना सर्वथा असंगत है । यह उल्लेख उसके अन्य सम्बंधियोंके विषय में ठीक जंचता है; जिनको भी उसने अन्तमें अपने समान कर लिया था। पहले एक ही कुटुम्बमें विभिन्न मतों के अनुयायी रहते थे, यह सर्वमान्य बात है । इसके विपरीत यदि पहले से ही हिंसातत्वका प्रभाव और खासकर जैन अहिंसाका, अशोक हृदयमें घर किये हुये न माना जाय तो उसका कलिंग - विजय में भयानक नरसंहार देखकर भयभीत होना असंभवता होजाता है । और यह भी तब संभव नहीं कि उसके रसोई घर में एकदम हजारोकी संख्या से कम होकर केवल तीन प्राणी ही मारे जाने लगते और फिर वह भी बन्द कर दिये जाते । यह ध्यान रहे कि वैदिक अहिंसा में मांसभोजनका हर हालत में निषेष नहीं है और न बौद्ध अहिंसा ही किसी व्यक्तिको पूर्ण शाकाहारी बनाती है । यह केवल
१- पाप्रा० ० ७१ । २-माप्रारा० भा० २ १० १८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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