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मौर्य साम्राज्य ।
[२५१ है। जैन शास्त्रोंमें जैन रानाओंके लिये 'देवानां प्रिय 'का प्रयोग हुआ मिलता है । भगवान महावीरके पिता राना सिद्धार्थको भी लोग 'देवानां प्रिय' कहकर पुकारते थे और उनकी माता रानी त्रिशलाको 'प्रियकारिणी' कहते थे।
अशोकपर जैनधर्मका विशेष प्रभाव पड़ा था। वह अपने पितामह और पिताके समान जैन धर्मानुयायी ही था; यद्यपि अपने धर्मप्रचारके समय उसने पूर्ण उदारतासे काम लिया था और जैन धर्मके माधारपर अपने धर्मका निरूपण किया था। बौड ग्रंथ 'महावंश' के आधारपर विद्वान उसे ब्राह्मण धर्मानुयायी बतलाते हैं; किन्तु इस ग्रन्यके कथन निरे कपोल-कल्पित प्रमाणित हुये हैं। इस कारण उसपर विश्वास करना कठिन है, तिसपर सिंहलके लोगोंके निकट ब्राह्मणसे भाव बौद्धेतर संप्रदायोंका होना उचित दृष्टि पड़ता है; क्योंकि बौड ग्रन्थों में ब्राह्मण और श्रमण रूप जो उल्लेख है; उनमें श्रमणसे भाव बौद्ध भिक्षुका है। और ब्राह्मण केवल वेदानुयायी ब्राह्मणोंका पोतक नहीं होसक्ता । उसके कुछ व्यापक अर्थ ठीक जंचते हैं। इस कारण यह संमव है कि इसी भावसे सिंहलवासियोंने अशोकको बौद्ध न पाकर उसे ब्राह्मण (बौद्ध-विरोधी) लिख दिया है। वरन् एक उस रानाके लिये निसके पितामह और पिता जेनी थे, और जिसका प्रारंभिक नीवन
१-अप० द्वितीय भन्याय, व ईऐ• भा० २० पृ० २३२ । २-सः पृ. २६-३० १ ५४ ।-भोक० पृ. २३ । ४-अशोक पृ. १३
४७, भाभो• पृ. ९६, मेनु• पृ. 11.। ५-मि... टॉम मा० भी पही ठीक समझते है। मारले. मा. पृ.११...
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