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संक्षिप्त जैन इतिहास |
करना भी था । इसके लिये अशोकने भरसक प्रयत्न किया। उसके महामात्र राज्य में दौरा करते थे और जनताको धर्मका उपदेश करते थे । प्रत्येक वर्ष में कुछ दिन ऐसे नियत कर दिये गये जिनमें 1 राजकर्मचारी सर्कारी काम करनेके अलावा प्रजाको उसका कर्तव्य बतलाते थे । जनसाधारणके चाल-चलनकी निगरानीके लिये निरीक्षक नियुक्त थे । इनका काम यह देखना था कि लोग मातापिताका आदर करते हैं या नहीं, जीव हिंसा तो नहीं करते । ये लोग राजवंशकी भी खबर रखते थे । स्त्रियोंके चाल-चलनकी देखभालके लिये भी अफसर थे । राज्यका दान विभाग अलग था । यहांसे दीनों को दान मिलता था । पशुओंको मारकर यज्ञ करनेकी किसीको आज्ञा नहीं थी ।"
अशोक एक बड़ा राजनीतिज्ञ, सच्चा धर्मात्मा और प्रजापालक अशोकका वैयक्तिक राजा था । इसकी अभिलाषा थी कि प्रत्येक जीवन । प्राणी अपने जीवनको सफल बनाये और परभवके लिये खुब पुण्य संचय करे। दया, सत्य, और बड़ोंका आदर करने पर वह बड़ा जोर देता था । वह प्रजाके सुखमें अपना सुख और दुःखमें दुःख समझता था ! वह एक आदर्श राजा था और उसकी प्रजा खुब सुखी और समृद्धिशाली थी । वह अपने आभिषेकके वार्षिकोत्सव पर एक एक कैदी छोड़ा करता था । 2 इससे प्रगट है कि उसके राज्यमें अपराध बहुत कम होते थे और जेलखानों में कैदियों का जमघट नहीं रहता था । उसकी एक उपाधि 'देवानां प्रिय' थी और उसे 'प्रियदर्शी' भी लिखा गया
१- भाइ० पृ० ७३-७४ । २-भाप्रारा० भा० ३ पृ० १३१
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