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भगवान महावीरका निर्वाणकाल |
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पांचवें मत के अनुसार शक व्दसे ७४१ वर्ष पहले वीर भगशकाब्दसे ७४१ वर्ष वानका निर्वाण हुआ प्रगट होता है । उस पूर्व भी भ्रांतमय है । मतका प्रतिपादन दक्षिण भारतके १८ वीं शताब्केि शिलालेखों में हुआ है। जैसे दीपनगुड़ी के मंदिवाले बड़े शिलालेख में इसका उल्लेख यूं है : " " वर्द्धमानमोक्षगत व्दे अष्टत्रिंशदधिपंचशतोत्तर द्विसहस्रपरिगते शालिवाहनशककाले सप्तनवतिसप्तशतोत्तरसहस्रवर्ष संमिते भवनाम सवत्सरे" इसमें शाका ११९७ में वीर सं० २५५८ होना लिखा है । वर्तमान प्रचलित सं० से इसमें १३७ वर्षका अन्तर है । इस अन्तरका कारण त्रिलोकसार के ८९० वें नं०की गाथाकी टीका है, जैसे कि हम ऊपर बता चुके हैं। द क्षण भारत के दिगम्बर जैन इतिहास ग्रन्थ 'रामा वलीकथे' से भी इसका समर्थन होता है । उसमें लिखा है कि 'महावीरजी मुक्त हुये तब कलियुग के २४३८ वर्ष बीते थे और विक्रमसे ६०५ वर्ष पूर्व वह मुक्त हुये थे । उपरोक्त टीकाके कथनसे भ्रम में पड़कर ऐसा उल्लेख किया गया है और इस भ्रमात्मक मतको भला कैसे स्वीकार किया जासक्ता है ?
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अंतिम मत है कि विक्रम जन्मसे ४७० वर्ष पहले महावीरअन्तिम मत स्वामीका निर्वाण हुआ था। और इस मतके अनुमान्य है । सार ही आजकल जैनोंमें वीरनिर्वाण संवत प्रचलित है । यह संवत् ताजा ही चला हुआ नहीं है बल्कि प्राचीन साहित्वमें भी इसका उल्लेख मिलता है। किन्तु इसकी गणना में पहले से
१ - ममेप्राप्रेस्मा • १० ९८-९९ । २ - जेनमित्र, वर्ष ५ अंक ११
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१० ११-१२ । ३-डाका लिखे हुएके गुटके में इसका उल्लेख है ।
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