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मौर्य साम्राज्य |
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जावन ।
उपरोक्त वर्णन से सम्राट् चंद्रगुप्तके राजनैतिक जीवनका चन्द्रगुप्तका वैयक्तिक परिचय प्राप्त है । 'प्रत्येक मनुष्य स्वयं विचार कर सकता है कि यह कैसा प्रतापी और विलक्षण राजा था; जिसने केवल २४ वर्षके अल्प समय में ही अपने हाथों स्थापित किये नवीन राज्यको ऐसी उन्नत दशापर पहुंचा दिया । आजसे २२ सौ वर्ष पूर्वके इसके राज्य प्रबंधका वर्णन पढ़कर हमारे पूर्वजोंको मूर्ख समझनेवाली आजकलकी साम्याभिमानी नातियां भी आश्चर्यचकित होती हैं ।' चन्द्रगुप्तका वैयक्तिक जीवन भी आदर्श था । वह दिनभर राजसभामें बैठकर न्याय किया करता था और वैदेशिक दूतों व्यादिसे मिलता था । राजाकी रक्षाके लिये यवनदेशकी स्त्रियां नियत थीं, जो शस्त्रविद्या और संगीत शास्त्रमें चतुर होती थीं। इस देशकी भाषा और रहन सहनसे उनका ही बिलकुल परिचय न होनेके कारण किसी षड्यन्त्रमें उनका संमिळित होना असंभव था। राजा भड़कीली पोशाक पहिनता था और उसकी सवारी भी बड़ी शान शौकत से निकलती थी । उसकी सवारीके चारों ओर सशस्त्र यवन स्त्रियां चलतीं थीं और उनके इर्द गिर्द बवाले सिपाही रहते थे । मार्गमें रस्सियों से सीमा निर्धारित कर दी जाती थी । इस सीमाको उल्घन करनेवाला मृत्युदण्ड पाता था। राजाको आबनूसके बेलनोंसे देह दबवानेका बड़ा शौक था । राज दरबार में भी उनकी इस सेवाके लिये चार परिचारक नियत रहते थे । राजाकी वर्षगांठ बड़ी धूमधाम से मनाई जाती थी । राजा नियमित रूपसे धार्मिक क्रियायें करते थे और मुनिजनों (भ्रमण)
१-आरा० भा० २ १० ९३ । २-माप्रारा० भा० २ पृ० ८०-८२ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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