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मौर्य साम्राज्य |
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चंद्रगुप्तके वाद मौर्यवंशका दूसरा राजा बिंदुवार था । विद्वान कहते हैं कि वह भी अपने पिताके समान जैनधर्मा
बिन्दुसार । नुपायी और पराक्रमी राजा था ।' जैन शास्त्रों में
इसका नाम सिंहसेन लिखा है । सन् ३०० ई० पू० के लगभग । वह मगध के राज्यसिंहासन पर बैठा था । इसका विशेष इतिहास कुछ ज्ञात नहीं है । किन्तु इस राज्यका संपर्क विदेशी राजाओंसे बढ़ा था; यह प्रगट है, मेगास्थनीजके चले जानेके बाद इसके राजदरबार में सिल्युकसके पुत्र एण्टिओकम नया दृत समूह भेजा था; फिर मिस्रनरेश टोल्मी फी डोलफसने भी डेओनीसे उसकी अध्यक्षता में एक द्रुत समूह भेजा था । बिन्दुसार के राज्यकालमें विदेशोंसे व्यापार के अनेक मार्ग खुले थे और आपस में दूतोंका शब्द अदल बदल होता था । यूनानी विद्वानोंने इसका नाम कुछ ऐसे शब्दों में लिखा है जो अमित्रघात अथवा अमित्रखादका अपभ्रंश प्रसीत होता है।
मशोकका राजतिलक |
बिन्दुसारकी एक रानी ब्राह्मण जातिकी सुभद्रांगी नामकी थी । अशोकका जन्म इसीकी कोखसे हुआ था । कहते हैं कि अशोकका एक बड़ा भाई और था; किन्तु सब भाइयोंमें योग्यतम होनेके कारण उसके पिताने उसे ही युवराज पद प्रदान किया था । बिन्दुसार के उपशन्त वही मगधका राजा हुआ था। उसके हाथोंमें राज्यभार
७ पृ० १५७ । २- लामाइ० १० १६९ ० १ १० १३२-१३५ । ४-भाप्रारा०
१- हिवि० भा० ३ - जराएसो० सन् १९२८
भा० २ पृ० ९६ ।
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