________________
२२६ ) संक्षिप्त जैन इतिहास । होगया, यह उसके अदम्य पुरुषार्थ और कर्मठताका प्रमाणपत्र है। सिल्यूकसकी ओरसे जो दूत मौर्य दरबारमें आया था, वह
मेगास्थनीज नामसे विख्यात् था । वह कई शासन-प्रबन्ध । -
वर्षांतक चन्द्रगुप्तके दरबारमें रहा था और बड़ा विद्वान् था। उसने उससमयका पूरा वृतान्त लिखा है। वह चन्द्रगुप्तको योग्य और तेजस्वी शासक बतलाता है । उसके वृत्तांत एवं कौटिल्यके अर्थशास्त्रसे चन्द्रगुप्तके शासन-प्रबन्ध और उप्त समयकी सामाजिक स्थितिका अच्छा पता चलता है। राज्यका शासन पंचायतों द्वारा होता था; यद्यपि प्रत्येक प्रान्त भिन्न २ गवर्नरोंके माधीन था। इन प्रांतिक अधिकारियों को छै पंचायतों द्वारा राज्यप्रबन्ध करना पड़ता था । 'एक पंचायत प्रजाके जन्ममरणका हिसाब रखती थी। दूसरी टैक्स यानी चुंगी वसुल करती थी। तीसरी दस्तकारीका प्रबंध करती थी। चौथी विदेशीय लोगोंकी देखभाल करती थी। पांचवीं व्यापारका प्रबंध करती थी।
और छठी दस्तकारीकी चीजोंके विक्रयका प्रबंध करती थी। कुछ विदेशीय लोग भी पाटलिपुत्र में रहते थे। उनकी सुविधाके लिये अलग नियम बना दिये गये थे।"
पाटलिपुत्र उप्त समय एक बड़ा समृद्धिशाली नगर था। और
. वह मौर्य सम्राट्की राजधानी थी। तब यह नगर राजधान ।
'' सोन और गंगाके संगमपर ९ मीलकी लम्बाई और १३ मील चौड़ाई में बता था। इसप्रकार वह वर्तमान पटनाकी तरह लंबा, संकीर्ण और समांतर-चतुर्भुनाकार था। उसके चारों ओर
१-भाइ० पृ. ६३। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com