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२२४] संक्षिप्त जैन, इतिहास। सेनाकी सहायतासे उसने समस्त उत्तर भारतके राजाओंको जीत लिया था। उसके सिंहासनारूढ़ होनेके पहले उत्तरी भारतमें ही छोटे २ बहुतसे राजा थे, जो आपतमें लड़ा करते थे। धीरे धीरे चन्द्रगुप्तने उन सबको अपने अधिकारमें कर लिया और उसके साम्राज्यका विस्तार बंगालकी खाड़ीसे भरब-समुद्र तक होगया । इस प्रकार " वह शृङ्खलाबद्ध ऐतिहासिक युगका पहला राजा है, जिसे भारत सम्राट् कह सकते हैं।"
महीसुर प्रांतकी अर्वाचीन मान्यताओंसे प्रगट है कि उस
_ प्रांतपर नंदवंशका भी अधिकार था । यदि यह दक्षिण-विजय।
बात ठीक मानी जाय तो नंदवंशके उत्तराधिकारी चन्द्रगुप्त मौर्यका अधिकार भी इन देशोंमें होना युक्तिसंगत है । तामिल भाषाके प्राचीन साहित्यमें अनेकों उल्लेख हैं, जिनसे स्पष्ट है कि मौर्योने दक्षिण भारतपर आक्रमण किया था और उसमें वे सफल हुये थे। किन्तु इससे यह निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सक्ता कि दक्षिण भारतकी यह विजय चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा ही हुई थी अथवा उसके पुत्र और उत्तराधिकारी बिन्दुसारने दक्षिण प्रदेश अपने आधीन किया था । परन्तु यह विदित है कि चन्द्रगुप्तका पौत्र अशोक जब सिंहासन पर बैठा, तब यह दक्षिण देश उसके साम्राज्यमें शामिल था। जैन मान्यताके अनुसार चन्द्रगुप्तका साम्राज्य दक्षिण भारत तक होना प्रमाणित है।'
१-भाइ० पृ. ६२ । २-ऑहिइ० पृ० ७४ । ३-श्रवण पृ० ३८। ४-ममैप्राजैस्मा० पृ. २०५ व जराएसो०; १९२८, पृ. १३५ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com