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संक्षिप्त जैन इतिहास |
बताया है। नदियोंसे भी सोना निकलता था । इसीकारण कहा जाता है कि भारत में कभी अकाल नहीं पड़ा और न किसी विदेशी राजाने भारतको विजय कर पाया । उनमें झूठ बोलने और चोरी करनेका प्रायः अभाव था । वे गुणोंका आदर करते थे । वृद्ध होनेसे ही कोई आदरका पात्र नहीं होता। उनमें बहु विवाहकी प्रथा प्रचलित थी । कहीं कन्यापक्षको एक जोड़ी बैल देनेसे वरका विवाह होता था और कहीं वर-कन्या स्वयं अपना विवाह करा लेते थे । * स्वयंवरकी भी प्रथा थी । विवाहका उद्देश्य कामतृप्ति और संतान वृद्धिमें था । कोई २ एक योग्य साथी पानेके लिये ही विवाह करते थे ।" वे छोटीसी तिपाईपर सोनेकी थाली में रखकर भोजन करते थे । उनके भोजन में चांवल मुख्य होते थे ।
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भारतीय तत्ववेत्ता |
यूनानियोंने भारतवर्षके तत्ववेत्ताओं का वर्णन किया है, वह बड़े मार्केका है । उन्होंने भारतकी सात जातियों में से पहली जाति इन्हीं तत्ववेत्ता - ओंकी बतलाई है । इनमें ब्राह्मण और श्रमण यह दो भेद प्रगट किये हैं । ब्राह्मण लोग कुल परम्परासे चली हुई एक जाति विशेष थी । अर्थात् जन्मसे ही वह ब्राह्मण मानते थे । किंतु श्रमण सम्प्रदाय में यह बात नहीं थी। हर कोई विना किसी नातिपांतके भेद श्रमण हो सक्ता था | ब्राह्मणोंका मुख्य कार्य दान, दक्षिणा लेना और यज्ञ कराना था । वे साहित्य रचना और वर्षफल भी प्रगट करते थे । वर्षारम्भ में वे अपनी रचनायें लेकर राजदर
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पृ० ७०-७१ । ३-ऐइ०
१ - मेऐइ० पृ० ३१-३३ । २ - ऐइमे० पृ० ३८ । ४- मेएइ० पृ० २२२ । ५- मेऐइ०, पृ० ७१ । ६ मेऐइ •, ०७४ । - मेऐ६०, पृ० ९८ । ८- ऐइ० १० १६९ व १८१
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