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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
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यूनानियोंने इन नग्नसाधुओंमें मन्दनीस और कलोनस नामकदिगम्बर जैन दो साधुओंकी बड़ी प्रशंसा की है। इनको साधु मन्दनीस और उन्होंने ब्राह्मण लिखा है और इस अपेक्षा कलानस । किन्हीं लेखकोंने उनका चरित्र वैदिक ब्राह्मणोंकी मान्यताओं के अनुकूल चित्रित किया है; किंतु उनको सबने नग्न बतलाया है ।" तथापि कलोनसको जो केशलोंच आदि करते. | लिखा है, उससे स्पष्ट है कि ये साधु जैन श्रमण थे। एक यूनानी लेखक ने क्लोनसको ब्राह्मण पुरोहित न लिखकर 'भ्रमण' बतलाया भी है । अतः मालूम ऐसा होता है कि जन्मसे ये ब्राह्मण होते हुये भी जैन धर्मानुयायी थे । इनका मूल निवास तिरहूतमें थी । सिकन्दर जब तक्षशिला में पहुंचा तो उसने इन दिगम्बर साधुओं की बड़ी तारीफ सुनी। उसे यह भी मालम हुआ कि वह निमंत्रण स्वीकार नहीं करते | इसपर वह खुद तो उनसे मिलने नहीं गया; किंतु अपने एक अफसर ओनेसिक्रिटस (Onesikritos) को उनका हालचाल लेनेके लिये भेजा । तक्षशिला के बाहर थोड़ी दूरपर उस अफसरको पन्द्रह दिगम्बर साधु असह्य धूपमें कठिन तपस्या करते मिले थे । कलोनस नामक साधुसे उसकी वार्तालाप हुई थी । यहीं साधु यूनान जाने के लिये सिकन्दर के साथ हो लिया था। मालूम होता है कि 'कलोनस' नाम संस्कृत शब्द 'कल्याण' का अपभ्रंश है । "
२ - ऐइ०, पृ० ७२ ।
पृ०
१ - विशेष के लिये देखो वीर, वर्ष ६ । ३- ऐरि० भा० ९ पृ० ७० । ४ - पे०, ६९ । ५ - यूनानी लेखक प्लूटार्कका कथन है कि यह मुनि आशीर्वादमें 'कल्याण' शब्दका प्रयोग करते थे । इस कारण कलॉनस कहलाते थे । इनका यथार्थ नाम 'स्फाइन्स' (Sphines ) था । मेऐइ० पृ० १०६ ॥
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