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श्रुतकेवली भद्रबाहु और अन्य आचार्य। [ २०१ श्रुतकेवली भद्रकाहुजी और
अन्य आचार्य।
(ई० पू० ४७३-३८३) जास्वामी अंतिम केवली थे । इनके बाद केवलज्ञान-सूर्य श्री मयाहजीको इस उपदेशमै मस्त होगया था; परन्तु पांच
समय । मुनिराज श्रुतज्ञानके पारगामी विद्यमान रहे थे। यह नंदि, नंदिमित्र, अपराजित, मोवर्धन और भद्रबाहु नामक थे।' नंदिके स्थानपर दूसरा नाम विष्णु भी मिलता है। यह पांचों मुनिराज चौदह पूर्व और बारह अंगके ज्ञाता श्री नम्बूस्वामीके बाद सौ वर्षमें हुए बताये गये हैं और इस अपेक्षा अंतिम श्रुतकेवली श्री भद्रबाहुस्वामी ई० पू० ३८३ अथवा ३६५ तक संघाधीश रहे प्रगट होते हैं। किन्तु भनेक शास्त्रों और शिलालेखोंसे यह भद्रगाहस्वामी मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्तके समकालीन प्रगट होते हैं।
और चन्द्रगुप्त का समय ई० पृ. ३२६-३०२ माना जाता है।' मव यदि श्री भद्रबाहुस्वामीका मस्तित्व ई० पू० ३८३ मा ३६५ के बाद न माना जाय तो वह चन्द्रगुप्त मौर्यके समकालीन नहीं होसके हैं।
'उपर विडोयपण्णति' जैसे प्राचीन ग्रन्थोंसे प्रमाणित है कि मगवान महावीरनीके निर्वाण कालसे २१५ वर्ष ( पालकवंश ६.
१-तिल्लोपन्मति गा० .२-७४ । २-मुवावतार कथा पृ. ॥ गपति गा. ४३-४।। -जेसि मा०, भा. १ कि. १-४ मान बे• पृ. २५-४०।४-अरिमोसो. भा. १ पृ. ९
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