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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
वर्ष+नन्दवंश १५५) बाद मौर्यवंशका मभ्युदय हुआ था। श्वेतांबर पट्टावलियोंसे सम्राट चन्द्रगुप्त का वीर निर्वाणसे २१९ वर्ष बाद ई० पू० ३२६ या ३२५ के नवम्बर माप्तमें सिंहासनारूढ़ होना प्रगट है। इस प्रकार चन्द्रगुप्तका राज्यारोहण काल जो ३२६ ई० पू० अन्यथा माना जाता है, वह जैन शास्त्रोंके अनुसार भी ठीक बैठना है । अतएव थी भद्रबाहु स्वामीका मस्तित्व ई० पू० ३८३ था ३६५ के बाद मानना समुचित प्रतीत होता है । जैन शास्त्रोंसे प्रकट है कि भद्रबाहुस्वामीके ही जीवनकाल में विशाखाचार्य नामक प्रथम दशपूर्वी का भी अस्तित्व रहा था। इस श्लोकमें दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही संप्रदायके ग्रंथोंसे भद्रबाहु और चंद्रगुप्त प्रायः समसामयिक सिद्ध होते हैं। पहिलेके चार श्रुतकेवलियोंके विषयमें दिगम्बर जैन शास्त्रोंमें
____ कुछ भी विशेष वर्णन नहीं मिलता है। हां, भद्रबाहुका चरित्र।
भद्रबाहुके विषयमें उनमें कई कथायें मिलती हैं। श्री हरिषेणके 'बृहत्कथाकोष ' ( सन् ९३१ ) में लिखा
१-तिप० गा० ९५-९६ । २-ईऐ० भा० ११ पृ. २५१ । ३-दिगम्बर जैनप्रन्थोसे प्रगट है कि भद्रबाहुस्वामी चन्द्रगुप्त सहित कटिपर्व नामक पर्वतपर रह गये थे और विशाखाचार्यके आधिपत्यमें जैनसंघ चोलदेशको चला गया था। उधर श्वेताम्बरोंकी भी मान्यता है कि भद्रबाहु अपने अन्तिम जीवनमें नेपालमें जाकर एकान्तवास करने • लगे थे और स्थूलभद्र पट्टाधीश थे। (परि० पृ० ८७-९०) अतः निस्संदेह भद्रबाहुजीके जीवनकाल में ही उनके उत्तराधिकारी होना और उनका ई. पू. ३८३ के बादतक जीवित रहना उचित जंचता है। २९ वर्ष तक वे पट्टपर रहे प्रतीत होते है और फिर मुनिशासक या उपदेशक रूपमें शेष जीवन व्यतीत किया विदित होता है । ४-जैशिसं०, पृ०६६। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com