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संक्षिप्त जैन इतिहास |
केवली भगवानके समाधिस्थानपर बनते हैं। तक्षशिला में आज भी कई भग्न जैन स्तूप मिले हैं ।
(९) 'सूर्य की प्रखर धूप में खड़े हुए दिगम्बर (नग्न) साधुओंसे सिकन्दर ने पूछा कि आप लोग क्या चाहते हैं ? उन्होंने उत्तर दिया कि, आप अपने साथियोंके साथ कहीं छायाका आश्रय लें । बस, हमको यही चाहिये ।" यह क्रिया दया दाक्षिण्यादि जैन साधुओं के उपयुक्त गुणयुक्त है । उन्होंने यूनानियों के लिये सूर्यका ताप असहिष्णु समझकर शीतल प्रदेशके उपयोगका उपदेश दिया प्रतीत होता है ।
(१०) श्रमणोंने कहा था कि 'इस परिभ्रमणका कभी अन्त होनेवाला नहीं । जब हमारी मृत्यु होगी तो इस शरीर और आत्माका जो अस्वाभाविक मिलन है, वह छूट जायगा । मृत्युके बाद हमें एक अच्छी गति प्राप्त होगी। यह मान्यतायें ठीक जैनों के समान हैं ।
(११) " एकबार सिकन्दरने ध्यानमग्न दश साधुओं को बलाकारसे पकड़कर मंगा लिया था। साधुओंसे उसने दस प्रश्न किये और धमकी दी कि यदि इनका ठीक उत्तर नहीं होगा, तो हम सबको एक साथ मरवा देंगे । परन्तु साधुओंके संघनायकने बड़ी निर्भीकतासे सिकन्दर से कहा था कि यद्यपि तुम्हारा शारीरिक और सैनिक बल हमसे बढ़ा चढ़ा है, किंतु आत्मिक बल तुम्हारा हमसे प्रबल नहीं होक्ता | कहा जाता है कि ये नग्न साधु सिकन्दर के सिपा१- जैसि : भा० भा० १ कि० २-३, पृ० ८- । २- पूर्ववत् । ३- ऐ६० पृ० ०५ ।
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