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संक्षिप्त जैन इतिहास |
(२) 'श्रमण नग्न रहते, कठिन परीषह सहन करते और किसीका निमंत्रण स्वीकार नहीं करते हैं । उनकी मान्यता जनसाधारण में खूब है ।" जैन मुनि कठिन परीषद सहन करने और निमंत्रण स्वीकार करने के लिये प्रख्यात हैं ।
(३) ' इन्डिया के साधु नग्न रहते और कोह कॉफका (Cau casus) बर्फ तथा सर्दीका वेग बिना संक्लेश परिणामोंके सहन करते हैं और जब वे अपने शरीरको अग्निके सुपुर्द कर देते हैं और वह जलने लगता है, तो उनके मुखसे एक आह भी नहीं निकलती है ।"" सर्दी, गर्मी, दंश आदि बाईस परीषहों को जैन मुनि समताभाव से सहन करते हैं उनको शरीर से ममत्व नहीं होता । अंतिम समय में वे सल्लेखना व्रत करते हैं और प्राणान्त होजानेपर अग्निचिता उनकी देह भस्म होजाती है । कल्याण (Kalanos ) नामक एक जैन मुनिके सल्लेखना व्रतका विशद वर्णन, यूनानियोंने किया है निम्नमें उसको प्रकट करते हुये इस विषयका स्पष्टीकरण होजायगा । आज भी जैन साधु इस व्रतका अभ्यास करते हुये मिलेंगे । इससे भाव आत्महत्याका नहीं है ।
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(४) 'उन (भारतीयों) के तत्ववेत्ता, जिनको वे 'जिन्मोसोफिस्ट कहते हैं, प्रातः कालसे सूर्यास्त तक सूर्यकी ओर टकटकी लगा कर खडे रहते हैं । खूब जलती हुई रेतपर वह दिनभर सभी इस पैर से और कभी दूसरे से स्थित रहते हैं । यहांपर जैन मुनियों को आतापन योग नामक तपस्याका साघन करते हुये बताया गया है । (५) साधारण मनुष्यों को संयमी और संतोषमय जीवन वितानेकी१- ऐइ० पृ० ६३ । २ - ऐइ० पृ० ६८ फुट० - १ । ३-ऐइ पृ० ६८ फु०२ ।
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