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सिकन्दर-आक्रमण व तत्कालिन जैन साधु [१८९ मारते हैं और न खेती करते हैं । वह घरों में नहीं रहते। और शाकाहार करते हैं। वह उत्त अनानको प्रयोगमें लाते हैं जो अपने आप पृथ्वीमें उपनता है और मई (millet) जैसा होता है।' बहुत करके यह वर्णन जैनोंके व्रती श्रावकों को लक्ष्य करके लिखा गया प्रतीत होता है । ब्राह्मणोंमें कतिपय ऐसे भी थे, जो मांस नहीं खाते और न मद्य पीते थे। भारतवासियोंको यूनानियोंने मितव्ययी किन्तु माभूषणोंके प्रेमी लिखा है। उनने मिश्रदेश समान यहां भी सात जातियों का होना लिखा है किन्तु यह राजनतिक अपेक्षासे सात भेद कहे जासक्ते हैं।
वैसे चार जातियां-ब्राह्मग, क्षत्री, वैश्य, शूद-यहां थीं। कृषक लोग अधिक संस्थामें थे । वे बड़े साल और दयालु थे । उन्हें युद्ध नहीं करना पड़ता था । क्षत्री लोग युद्ध करते थे । प्रत्येक जाति के लिये मपना व्यवसाय करना अनिवार्य था । युद्धके समय भी खेती होती रहती थी। कोई भी उनको नहीं छेड़ता था, फसलका : भाग स्वयं रखने और शेष रानाको देते थे।"भार. तीय घने बुने हुए कपड़ेको लिखनेके काममें लाने थे।
भारतमें अन्ननल की बाहुल्यता और विशेषता थी। उनका शरीर गठन साधारण मनुष्योंसे कुछ विशेषता रखता था और उसका उन्हें गर्व था। वह शिल्प और ललित कलाओंमें खूब निपुण थे। घरती शाक और अनान तो उगता ही है परन्तु अनेक प्रकारकी धातुयें भी निकलती थीं । सोना, चांदी और लोहा विशेष परिणाममें निकलता
१-ऐइ० पृ. २ । २-ऐ६० पृ० १८३ । ३-ऐ३० पृ. ३० । ४-ऐ३० मे पृ. ४०-४३ । ५-ऐइ. पृ. ६-ऐ६० पृ० ५६ ।।
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