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संक्षिप्त जैन इतिहास । उनको प्रतिबुद्ध किया था । हमारे विचारमें यह महापद्म नाम नंदरानाका ही द्योतक है । नो हो, इतना स्पष्ट है कि नंदराजा ब्राह्मगोंके द्वेषी थे और वह जैनधर्मसे प्रेम रखते थे। उनका जन धर्मानुयायी होना कुछ आश्चर्य ननक नहीं है । इन नव नंदोंके मंत्री निम्सन्देह जैन धर्मानुयायी थे । महापद्म का मंत्री पल्पक नामक था और इसका ही पुत्र अगाडीके नन्दका मंत्री रहा था । ___ महापद्मनन्दमें अपने दादा नन्दवर्द्धनके समान क्षात्रशक्ति
____और रणकौशलकी बाहुल्यता थी। उसने नंदराज्यको
'। विस्तृत बनाने के प्रयत्न किये थे। उसने कौशाम्बीको जीतकर वहां के पौरववंशका अंत किया था। गंगा व जमनाकी तरा. ईवाले और भी छोटे२ स्वाधीन राज्यों-पांचाल, कुरु आदिको उसने अपने अधिकार कर लिया था । इमप्रकार कुशलतापूर्वक वह ई० पूर्व ३३६-३३८ तक राज्य करता रहा था। महापद्मके पहिले महानन्दके वास्तविक उत्तराधिकारी दो पुत्र नन्द महादेव
और नंद चतुर्थ कुल ३७४ से ३६६ ई० पूर्वतक नाममात्रको राज्याधिकारी रहे थे। उनका संरक्षक महापद्म था और अन्तमें उसने ही राज्य हथिया लिया था। __ अंतिम नन्द सफल्य अथवा धननन्द था । यह बड़ा लालची
____ था। इसका मंत्री सकटाल जैन धर्मानुयायी था; अन्तिम-नन्द ।
- जो अन्तमें मुनि होगया था। इसके पुत्र स्थूलभद्र और श्रीयक थे । स्थूलभद्र भैनमुनि होगये थे और श्रीय
१-अहि: पृ० ४५-४६ । २-कहिइ० पृ० १६४ । ३-हिलिगै० पृ० ४५ । ४-जविओसो०, भ.० १ पृ० ८९-९० ।५-आक० भा० ३पृ० ७८-८१। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com