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नन्द-वंश |
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[ १८५ कको मंत्रीपद मिला था । इसीका अपरनाम संभवतः राक्षस था । " धननन्दमें इतनी योग्यता नहीं थी कि वह इतने विस्तृत राज्यको समुचित रीति से संभाल लेता; यद्यपि उस समय भारतमें वह सबसे बड़ा राजा समझा जाता था । यूनानियोंने उसको मगध और कलिङ्गका राजा लिखा है और बतलाया है कि उसकी सेनामें २ लाख पैदल सिपाही, २० हजार घुड़सवार, २ हजार रथ और ३ या ४ हजार हाथी थे । यूनानियोंने यह भी लिखा है कि उसकी प्रजा उससे अप्रसन्न थी । उबर कलिंग में ऐर वंशके एक राजाने घननंदसे युद्ध छेड़ दिया । घननन्द उसमें परास्त हुआ और कलिंग उसके अधिकार से निकल गया था । इधर चाणिक्यकी सहायता से चन्द्रगुप्तने भी नन्दपर आक्रमण कर दिया था । नन्दका सेनापति भद्रनाल था । " इम युद्ध में भी उसकी हार हुई और उसके साथ ही ई० पू० ३२६ में नंदवंशकी समाप्ति होगई
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थी । कहते हैं कि इसने ही जैनोंके तीर्थ पञ्चपहाड़ी का निर्माण पटना में कराया था । "
१- हिलिज० पृ० ४५। २- मुद्रा० नाटक में नंदराजा के मंत्रीका नाम यही है । इसका भी जैन होना प्रगट है । वीर वर्ष ५ पृ० ३८८ । ३- अहि० पृ० ४०-४१ । ४- जत्रिओसो ० भा० ३ पृ० ४८३ ॥ ५- मिलिन्द ० २।१४७ । ६-चीनी लोग नन्दराजाकी मृत्यु ई० पूर्व ३२७
चताते है । ऐरि० भा० ९ पृ० ८७ । ७- अहि० पृ० ४६ ।
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