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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
मिलते कि वे सर्वलघु हैं !' इससे यह ठीक जंचता है कि आयुमें भ० महावीरसे म० बुद्ध अवश्य बड़े थे; परन्तु एक मतप्रवर्तककी भांति वह सर्वलघु थे; क्योंकि अन्य सब मत म० बुद्ध से पहलेके थे ! इसप्रकार भ० महावीरका निर्वाण म० बुद्धके शरीरान्तसे दो वर्ष पहले मानना ठीक है और चूंकि बौद्धों में म० बुद्धका परिनिव्वान ई० पूर्व ५४३ वर्ष में माना जाता है, इसलिये भ० महावीरका निर्वाण ई० पूर्व ५४५ में मानना आवश्यक और उचित है । जैसे I पहिले भी यही अन्यथा प्रगट किया जाचुका है ।
उक्त मतका
। दिगम्बर जैनशास्त्रोंके कथनसे भी भ० महावीरकी जीवन दि० जैन शास्त्रोंसे घटनाओं का उक्त प्रकार होना प्रमाणित है । यह लिखा जाचुका है कि श्रेणिक बिम्बसारकी समर्थन होता है। मृत्यु भ० महावीरके जीवन में ही होगई थी और उनके बाद कुणिक अजातशत्रु विधर्मी होगया था; जिसे भ० महावीर के निर्वाणोपरान्त श्री इन्द्रभूति गौतमने जैनधर्मानुयायी बनाया था । इतिहास से श्रेणिकका मृत्युकाल ई० पू० ११२ प्रकट है । तथापि सं० १८२७की रची हुई 'श्रेणिकचरित्र' की भाषा वचनिका में है कि:
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राज अविकार ।
श्रेणिक नीति सम्भालकर, करे बारह वर्ष जु बौद्धमत रहा कर्मवश धार ॥५२॥ बारह वर्ष तने चित धरो, नन्दग्राम यह मारग करो । तह थी सेठि साथि चालियो, तब वेणक नगर आयिये ॥५३॥ नन्दश्री परणी सुकुमाल, वर्ष दूसरे रह सुबाल । सात वर्ष भ्रमण घर रहे, पाछे आप राजसंग्रहे ॥ ५४ ॥
१-सुत्तनिपात (S. B. E; X) पृ० ८७ व भमबु० पृ० ११० ।
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