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संक्षिप्त जैन इतिहास |
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सर्वज्ञ होकर चालीस वर्ष तक जिनधर्म का प्रचार सर्वत्र करते रहे थे । ' इनका भव नामक शिष्य प्रख्यात्थ । विद्युच्चोर भी महातपस्वी मुनि हुये थे । उनने भी चहुँओर विहार करके धर्मकी मन्दाकिनी विस्तृत की थी । एक दफे मथुरा में उनपर एक वनदेवताने घोर उपसर्ग किया था; जिसमें वह दृढ़परिकर रहे थे । बारह वर्ष तक तप करके वह सर्वार्थसिद्धिमें अहमेन्द्र हुये । अर्हदास सेठ समाधिमरण पूर्वक छठवें स्वर्ग में देव हुये । निमती सेठानी एवं अन्य महिलायें भी मरकर देव हुई थी। * यद्यपि जम्बुकुमारका विहार और धर्म प्रचार प्रायः समग्र सर्वज्ञ - दशा में देशमें हुआ था; किन्तु ऐसा मालून होता है कि धर्मप्रचार | बंगाल और विहारसे उनका सम्पर्क विशेष रहा था। सुधर्मा और जम्बूस्वामी पुण्ड्रवर्द्धन में विशेष रीतिसे धर्मपचार करने आये थे और उपरांत यह स्थान जैन का मुख्य केन्द्र होगया थी। कहते हैं कि जम्बूस्वामीको निर्वाण लाभ भद्रबाहुके जन्मस्थान कोटिकपुर में हुआ था, किन्तु भगवान सकलकीर्तिके शिष्य ० निनदासने उनका निर्वाणस्थान विपुलाचल पर्वत बतलाया है । उघर दि० जैनों की मान्यता है कि जम्बूस्वामी मथुरा से मोक्षधाम सिधारे थे। उनकी इस पवित्र स्मृतिने वहां पर वार्षिक मेला भी भरता है । अतः निश्चितरूपमें यद्यपि यह नहीं कहा ना
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१ - उपु० पृ० ७१० किन्तु एक प्राचीन गाथामें यह समय ३८ वर्ष लिखा है । ( 'अठतीस वास रहिने केवलणाणीय उक्किहो ॥' ) श्वतांबर ४४ वर्ष और कुल आयु ८० वर्षकी बताते है । जैसा सं० खण्ड १ वीर वंशा० पृ० ३ । २-उपु० पृ० ७१० । ३-जम्बू० पृ० ६४-६५ । वीर वर्ष ३ पृ० ३७० | ५ - पूर्व व राजा वलीकथे- जहि० भा० ११ ६१९ । ६ - जैहि भा० ११ पृ० ६१९ ।
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