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भगवान महावीरका निर्वाणकाल । [१६३ प्रकट है।' इन बातों का सादृश्य जैनोंके उपरोक्त उल्लेखसे है। साथ ही आनकल नो नहपानका अंतिम समय ई० पूर्व ८२ से १२४ ई. तक माना जाता है वह भी नैनों की प्राचीन मान्यतासे ठीक बैठता है; क्योंकि उनके अनुपार वीर निर्वागसे ४६१ से ६०५ वर्ष बाद तक शक राना हुआ था । अब यदि वीर निर्वाण ई. पूर्व ५४५ में माना जाय, जिसका मानना ठोक होगा, जैसे हम अगाडी प्रगट करेंगे, तो उक्त समय ई० पूर्व ८४ से ई. ६० तक पहुंचता है । चूँ के यह समय शक रानाके उत्पन्न होने का है । इसलिये इसका सामञ्जस्य नहपानके उपरोक्त अंतिम ममयसे करीब२ ठीक बैठता है। इसके साथ ही नहपानका जैन सम्बंध भी प्रगट है । जैन शास्त्रोंमें नहपान का उल्लेख नरवाहन, नरसेन, नहवाण और नभोवारण रूपमें हुआ मिलता है। 'त्रिलोकप्रज्ञप्ति' में उसका उल्लेख नरवाहन रूरमें हुआ है। एक पट्टावली में उन्हें 'नहवाण' के नामसे उल्लिखित किया है। इस नाममें नहपानसे प्रायः नाम मात्रका अन्तर है। इसी कारण श्रीयुत् काशीप्रसाद जायसवाल और पं. नाथगमनी प्रेमीने नरवाहनको नहपान ही प्रगट किया है।
१-भाप्राग०, भा० १० १२-१३। २-जाह, भा० १३ १० ५३३-यहांचर शायद यह आपत्ति हो सकती है कि यदि त्रिलोकप्रज्ञप्ति के कर्ताको शराजा नामसे नहपानका उन्हख करना था, तो उन्हें ९३९४ गाथाओमें शराज.के स्थानपर नावाहन नाम लिखना उचित था ! इसके उत्तरमें हम यही कहेंगे कि 'त्रि०प्र०' के रचना काल के समय इस बातका पता लगाना कटिन था कि नहपान और शकराजा एक ही थे। विशेषके लिये देखो वीर वर्ष ६ । 3-ऐ०. भा० ११ पृ. २५१। ४-जैसा ., भा० १ ० ४ पृ. २१११५-हि. मा.१३.५३४॥
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