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१६२] संक्षिप्त जैन इतिहास । ईस्वी पूर्व प्रथम शताब्दिका अंतिम भाग प्रमाणित होता है । इस अवस्थामें गौतमीपुत्र शातकवर्णीका समय भी सन् १२० के बहुत पहले प्रगट होता है और यह उचित जंचता है कि उसने क्षहरात वंशनोंको सन् ७०-८० के लगभग परास्त किया था । अतः यह समय शक संवत्के प्रारम्भकालसे ठोक बैठता है और शालिवाहन (गौतमीपुत्र शातकर्णी ) द्वारा उसका चलाया जाना तथ्यपूर्ण प्रतीत होता है। इस दशामें जैन शास्त्रों में जिस शक रानाका उल्लेख है वह शक संवतका प्रवर्तक नहीं होसक्ता क्योंकि वह शकवंशका राजा था ! पहलेके जैन शिलालेखों और राजा वलीकथे ' से भी इस बात का समर्थन होता है। जैसे कि हर्मा अगाड़ी देखेंगे।
तो अब देखना चाहिये कि जैन शास्त्रों का शक राना कौन नहपान हो शकराजा था ? नोंके अनुसार उसका वीर निर्वाहै। अतः दूसरा मत णसे ४६१ या ६०५ वर्ष बाद होना,
मान्य नहीं है। उसके वंशका २४२ वर्ष तक राज्य करना और उनके बाद गुप्तवंशो रानाओंका अधिकारी होना प्रगट है। भारतीय इतिहासमें गुप्तवंशके पहले क्षत्रपवंशी राजाओं का राज्य प्रख्यात था । यह शक जातिके विदेशी लोग थे। तब इनमें क्षहगत शाखाके राजा प्रबक थे; जिसकी स्थापनाका मुख्य य नहपानको प्राप्त है। नहपान के बाद सन् ३८८ ई. तक इस वंशमें पई सना हुए थे । अन्तम गुप्तवंशी राना समुद्रगुप्तने इन्हें जीत लिया था। इसप्रकार इनका राज्यकाल लगभग ढाईमौ वर्षातक
१-जमीयो०, भा० १८ पृ. ६:-७१।
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