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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर । [११७ भगवानको निर्वाण लाभ हुआ सुनकर आसपास के प्रसिद्ध राजा लोग भी पावापुर के उद्यानमें पहुंचे थे और वहांपर दीपोत्सव मनाया था। 'कश्मूत्र में लिखा है कि " उस पवित्र दिवस जब पूज्यनीय श्रमण महावीर सर्व सांसारिक दुःखोंसे मुक्त होगए तो काशी और कौशलके १८ रानाओंने, ९ मल्लरानाओंने और ९ लिच्छिवि राजाओं ने दीपोत्सव मनाया था। यह प्रोषधका दिन था और उन्होंने कहा-ज्ञानमय प्रकाश तो लुप्त होचुका है, आओ भौतिक प्रकाशसे जगतको दैदीप्यमान बनावें । ""
भगवान महावीरनीका निर्वाण होगया। भारतमेसे ज्ञानका भगवान महावीरके साक्षात् प्रकाश विलुप्त होगया। तत्कालीन
पवित्र स्मारक। जनताने इस दिव्य अवमरकी पवित्र स्मृतिको चिस्थाई बनाने में कुछ उठा न रक्खा । उसने भगवान के निर्वाणस्थानपर एक भव्य मंदिर और स्तुप भी बनाया था, जहां आन भी भगवानके चरण-चिन्ह विरानमान हैं। साथ ही भक्तवत्सल प्रनाने एक राष्ट्रीय त्यौहार दीपोत्सव' अथवा दिवालीकी सृष्टि इन महापुरुषके पावन स्मारकरूप की थी। इस त्यौहारको भान भी समस्त भारतीय पारस्परिक भेद-भावनाको मृलकर एक-मेक होनाते हैं और प्रेममई दिवाली मनाते हैं। इसके अतिरिक्त तत्कालीन जनताने भगवान के निर्वाणकालसे एक भब्द प्रारम्भ किया था; जैसे कि बार्लीग्रामसे प्राप्त और मनमेर अनायबघरमें रक्खे हुये वीर निर्वाण सं० ८५ के प्राचीन शिलालेखसे प्रगट है। जनताकी
1-Js. I,d. 266. २-मम० पृ० १९० । ३-हगि• १९-१३ व २१-१६ । ४-मम. प्र. २४-२४५ ।
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