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संक्षिप्त जैन इतिहास । अनेन तपस्वीको जैनधर्मका उपदेश देकर जैनी बनाया था। इसी तरह उन्होंने एक अन्य गरीब शूद वर्णके मनुष्यको जनधर्मका श्रद्धानी बनाकर उसे अपने आभूषण आदि दिये थे।
गृहस्थ धर्मका पालन करने का अधिकार प्रत्येक प्राणीको था। श्रावक लोग नवदीक्षित जैनीके साथ प्रेममई व्यवहार करके वात्स. त्यधर्मकी पूर्ति करते थे। उसके साथ जातीय व्यवहार स्थापित करते थे। जिनदत्त सेठने बौद्धधर्मी समुद्रदत्त सेठके जैन होनानेपर उसके साथ अपनी कन्या नीली का विवाह किया था। खानपानमें
शुद्धिका ध्यान रखा जाता था; किन्तु यह बात न थी कि किसी इतर वर्णी पुरुषके यहाँके शुद्ध भोजनको ग्रहण कानेसे किसीका धर्म चला जाता हो ! राना उपश्रेणिकने भील कन्यासे शुद्ध भोजन बनवाकर ग्रहण किया था। (आक० मा० २ ४० ३३ ) जैन मंदिरोंका द्वार प्रत्येक मनुष्यके लिये खुला रहता था। चम्पाके बुद्धदास और बुद्धसिंह नन मंदिरके दर्शन करने गये थे और अंतमें वह जैनी होगये थे। पशु तक भगवानका पूजन कर सक्ते थे । कुमारी कन्याको पत्नीवत ग्रहण करके उसके साथ रहनेवाले पुरुषके यहां मुनिरानने आहार लिया था। आजकल ऐसे व्यक्तियोंको 'दस्ता' कहकर धर्माराधन करनेसे रोक दिया जाता है। किंतु उस समय 'दस्सा' शब्दका नामतक नहीं सुनाई पड़ता था। किसी भी व्यक्तिके धर्मकार्यों में बाधा डालना उस समय अधर्मका कार्य समझा जाता था। और न उस समय अग्नि पूना, तर्पण मादिको धर्मका अंग
१-क्षनचूडामणि लम्ब ६ को, ७-8 व लम्न ७ श्लो०.२३-३: । २-आक० भा० २ पृ०२८।३-सी० पृ०.१०५। ४-उपु० पृ. ६४२ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com