________________
श्री वीर संघ और अन्य राजा ।
| १२५ प्रतिष्ठित गिने जाते थे । इसीलिये इम ग्रामका नाम 'ब्राह्मण' 'ब्राह्मपुरी' अथवा 'गौतमपुरी' भी प्रसिद्ध होगया था । यह तीनों ही माई विद्याके अगाध पंडित थे । यह कोष, व्याकरण, छन्द, अलङ्कार, तर्क, ज्योतिष, सामुद्रिक, वैद्यक और वेदवेदांगादि पढ़कर विद्यानि - पुण होगए थे । इनकी विद्वत्ता और बुद्धिमताकी घाक ख़ूब जम गई थी और इनके गुणों की लोक-प्रसिद्धि ऐसी हुई कि दूर दूर तक के विद्यार्थी विद्याध्ययन करनेके लिये इनके पास आते थे ।
'सन ई० से ५७५ वर्ष पूर्व मिती श्रावण कृष्ण २ को इन्द्रमृति गौतम अपनी लगभग ५० वर्षकी अवस्था में, देवेन्द्रके कौशल द्वारा भगवान महावीरसे शास्त्रार्थ करनेके विचारसे उनके निकट पहुंचे; जब कि वीर प्रभृको उक्त मितीसे ६६ दिन पूर्व मिती वैशाख शुक्ल १० को कैवल्यपद प्राप्त होचुका था; तो भगवानके तप, तेन और ज्ञानशक्ति से प्रभावित होकर तुरन्त गृहस्थ दशाको त्याग कर मुनि होगये । अग्निभूति और वायुभूति भी इनके साथ गये थे । वे भी मुनि होगये' । अपने गुरुओं को भगवानकी शरण में पहुंचा देखकर इन तीनों भाइयों के पांचसौसे अधिक शिष्य भी वीरसंघ में सम्मिलित होगये थे ।
I
इन्द्रभूति गौतमने जिनदीक्षा के माथ ही उसी दिन पूर्वाह्न निर्मल परिणामों द्वारा सात ऋद्धियों और मन:पर्यय ज्ञानको पा लिया था तथा रात्रि में उन्होंने जिनपत्रिके मुख से निकले हुये, पदार्थोंका है विस्तार जिसमें ऐसे उपाङ्ग महित द्वादशाङ्ग श्रुतकी पद रचना कर ली थी। इनकी कुल आयु ९२ वर्षकी थी;
१- नेश० पृ० ६०-६१ । २-३० पु० पृ० ६१६ ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com