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तत्कालीन सभ्यता और परिस्थिति। [१४७ कारण है कि तब विधवाओं का विलाप प्रायः नहीं के बराबर सुननेको मिलता था । विधवा हुई स्त्रियां, फिर अधिक समय तक गृहस्थी में नहीं रहती थी । वे साध्वी होनातीं थीं अथवा उदासीन श्राविकाके रूप में अपना जीवन बिताती थीं। उनका चित्त मामारिक भोगोपभोगकी ओर आकृष्ट नहीं होता था। हां, यदि भाग्यवशातु कोई कुमारी कन्या अथवा विधवा सन्मार्गसे विचलित हो • जाती थी तो उसके साथ वृणाका व्यवहार नहीं किया जाता था। उन्हें मब ही धर्मकार्य करनेकी म्वाधीनता रहती थी।
चंपानगरकी कनकलताका अनुचित मम्बंध एक युवासे हो गया था । इसपर यद्यपि वे ल जन हुये थे; परन्तु उनके धर्मका. यों में बाधा नहीं आई थी। वे पति-पत्नीवत् रहते हुये, मुनिदान
और देवपूनन करते थे । इमी तरह ज्येष्ठा आर्यिकाके भृष्ट होने पर. उसे प्रायश्चित और पुनः दीक्षा देकर शुद्ध कर लिया गया था। महिलायें विपत्ति में पड़ने पर बड़े माहससे अपने शोकधर्मकी रक्षा करती थीं और ममान भी इसी तरह पीड़ित हुई कन्याका अनादर नहीं करती थी। चंदनाका उदाहरण स्पष्ट है। मागंशतः भगवान महावीरनीके समयमें महिलाओं का जीवन विशेष आदरपूर्ण और स्वाधीन था।
निम देश अथवा समानकी स्त्रियां विदुषी और ज्ञानवान इस समयके वोर और होती हैं, वहांका पुरुष व स्वभावतः पराकमी पुरुष। विद्यापट और विचक्षण बुद्धिवाला होता है।
१-३० पु. पृ. ६४३ । २-भाक० मा• २ पृ. ५६ । ३-3. पु• पृ. ६१७ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com