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१५२] संक्षिप्त जैन इतिहास ।
जैनधर्म जैसा आज मिल रहा है, उपका ठीक वैसा ही रूप तब और अबका उस समय था, यह मान लेना जरा कठिन है; ___जैनधर्म ! क्योंकि जब इसी जमानेके किसी मतप्रर्वतकके सिद्धान्त ठीक वैसे नहीं रहते, जैसे वह बताता है; तब यह कैसे संभव है कि ढाई हजार वर्ष पहिले प्रतिपादित हुमा धर्म मान ज्यों का त्यों मिल सके ! किन्तु इतनी बात निःसन्देह सत्य है कि जैनधर्मके दार्शनिक और सैद्धांतिक रूपमें बिल्कुल ही नहीं, कुछ अन्तर पड़ा है। इसका कारण यह है कि जैनधर्म एक वैज्ञानिक धर्म है । विज्ञान सत्य है । वह नैमा है वैसा हमेशा रहता है। इसी लिये जैनधर्म का दार्शनिक रूप आज भी ठोक वैसा ही मिलता है, जैसा उसे भगवान महावीरने बतलाया था। इसका समर्थन बौद्ध ग्रन्थोंसे होता है; जहां जैनोंके प्राचीन दार्शनिक सिद्धांत ठीक वैसे प्रतिपादित हुये हैं, जैसे मान मिलते हैं। और इसप्रकार यह कहा जातक्ता है कि भगवान महावीरके मूल धर्मसिद्धांत माज भी अविकृतरूपमें मिल रहे हैं-सिर्फ अन्तर यदि है तो उनके द्वारा बताये हुए कर्मकांड अथवा चारित्र सम्बंधी नियमोंमें है । अतः उस समयके धार्मिक क्रियाकांडपर एक नजर डाल लेना उचित है।
पहेले ही मुनिधर्मको ले लीजिये। इस समय यह मतभेद
समयका है कि जैन मुनिका भेष मूलमें नग्न था अथवा मुनिधर्म। वस्त्रमय भी था; किंतु बौद्धशास्त्रों के आधारसे यह प्रगट किया जाचुका है कि जैन मुनि नग्न भेषमें रहते थे और उनकी क्रियायें प्रायः वैसी ही थी जैसी कि माम दिगम्बर जैन
१-ममबु पृ० ११७-२७० ।
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