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तत्कालीन सभ्यता और परिस्थिति । [ १५१
किंतु यह 'पोम्डम' अधिक दिनोंतक नहीं चल सका, यह हम देख चुके हैं और जानते हैं। भगवान पार्श्वनाथजी के सदुपदेश से मानवों को ज्ञान नेत्र मिल गये थे। अनेकों मत प्रवर्तक हर किसी जातिमेंसे अगाड़ी आकर विना किसी भेद भावके प्रचलित धार्मिक क्रियाकाण्डके विशेष में अपना झंडा फहराते विचर रहे थे । शासक समुदाय इन लोगोंको आश्रय देने में संकोच नहीं करता थी । फिर इसी समय भगवान महावीर और म० बुद्धका जन्म हुआ । लोगोंके भाग्य खुल गये । आत्म- स्वातंत्र्यका युग प्रवर्त गया । दोनों महापुरुषोंने वैदिक कर्मकाण्डकी असारता और उसका घोर हिंसक और भयावह रूप प्रकट कर दिया ।
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जैन ग्रन्थों में कई स्थलों पर ऐसे उल्लेख मिलते हैं, जिनमें जैनोंने लोगोंके हृदयों पर यज्ञमें होनेवाली हिंसाका क्रूर परिणाम अंकित करके उन्हें अहिंसामार्गी बना दिया था | साथ ही उस समय वृक्षों की पूजा और गंगा नदियों में स्नान अथवा जाति और कुलको धर्मका कारण मानना पुण्यकर्म समझे जाते थे। जैन शिक्षकोंने बड़ी सरळ रीति से इनका भी निराकरण कर दिया थी; जिसका प्रभाव जनता पर काफी पड़ा था। वह बड़ी ही सुगमता से अपनी मूल समझ सकी थी। इस सबका परिणाम यह हुआ कि महिंसा की दुन्दुभि चहुओर बनने लगी और महावीर स्वामीके जयघोषके निनादसे आकाश गूंज गया ।
१- मम० पृ० १४-१७ । २ - प्रच० पृ० ३३५-३३६ व उस्• -२५ ( Pt. II. pp. 139 - 140 ) ३ - श्रेच० पृ० ३३२-३३०
व उपु० पृ० ६२४-६२६ ।
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