________________
१४९) संक्षिप्त जैन इतिहास । जनताकी मनमानी मुगद पूरी हुई और वह अपने जाति अथवा "कुलमदको भूल गई थी !
तब भारतमें विश्वप्रेमकी पुण्यधाराका अटूट प्रवाह हुआ । . तब जाति या कलकी जनता गुणोंकी उपासक बन गई। ब्राह्मण. मान्यता न होकर क्षत्रिय अथवा वैश्यत्वका उसे अभिमान गुणोंका आदर ही शेष न रहा ! सब ही गुणोंको पाकर
होता था। श्रेष्ट बनने की कोशिश करते थे । धन्यकुमार सेठको देखिये; उनके गुणों का आदर करके सम्राट श्रेणिकने अपनी पुत्रीका विवाह उनसे कर दिया था और उन्हें राज्य देकर अपने समान राज्याधिकारी बना दिया था। यही बात इनसे पहले हुये सेठ भविष्यदत्तके विषयमें घटित हुई थी। वह वैश्यपुत्र होकर भी राज्याधिकारी हुये थे । हस्तिनागपुरके राजसिंहासनपर मारूढ़ होकर उन्होंने प्रजाका पालन समुचित रीतिसे किया था । सेठ प्रीतिंकरको क्षत्री राजा जयसेनने आधा राज्य देकर राजा बनाया था। सारांशतः स्वतंत्र अन्वेषणके आधारसे विद्वानोंको यही कहना पड़ा है कि “ उस समय ऊपरके तीन वर्ण (बाह्मण, क्षत्री, वैश्य) तो वास्तवमें मूलमें एक ही थे; क्योंकि राना, सरदार और विप्रादि तीसरे वैश्य वर्णके ही सदस्य थे जिन्होंने अपनेको उच्च सामाजिक पदपर स्थापित कर लिया था। वस्तुतः ऐसे परिवर्तन होना जरा कठिन थे, परन्तु ऐसे परिवर्तनोंका होना संभव था। गरीब मनुष्य राजा-सरदार (Nobles) बन सक्ते थे और फिर दोनों ही ब्राह्मण
१-धन्यकुमार चरित्र देखो । २-मविष्यदत्तचरित् । ३-उपु० पर्व ७६ श्लो० ३४६-३४८ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com