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तत्कालीन सभ्यता और परिस्थिति ।
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[ १४३ दोसते थे । ऐसे परिवर्तनोंके अनेक उदाहरण ग्रन्थों में मिलते हैं । इसके अतिरिक्त ब्राह्मणोंके क्रियाकांडयुक्त एवं सर्व प्रकार की सामाजिक परिस्थितिके पुरुष स्त्रियोंके परस्पर सम्बन्ध के भी उदाहरण मिलते हैं और यह उदाहरण केवल उच्च वर्णके ही पुरुष और नीच कन्याओंके सम्बन्धके नहीं हैं, बल्कि नीच पुरुष और उच्च स्त्रियोंके भी हैं । ""
सचमुच उस समय विवाहक्षेत्र अनि विशाल था। चारों विवाह क्षेत्रकी वर्णोंके स्त्री-पुरुष मानन्द परस्पर विवाह सम्बन्ध विशालता । करते थे। इतना ही क्यों, म्लेच्छ और वेश्याओं आदिसे भी विवाह होते थे । राजा श्रेणिकने ब्राह्मणी से विवाह किया था; जिसके उदरसे मोक्षगामी अभयकुमार नामक पुत्र जन्मा थारे । वैश्यपुत्र नीवंधरकुमारने, क्षत्रिय विद्याधर गरुड़वेगकी कन्या गन्धर्वदत्ताको स्वयंवर में वीणा बजाकर परास्त किया और विवाहा थैौ । स्वयंवरमंडपमें कुलीन अकुलीनका भेदभाव नहीं था | विदेह देशके धरणीतिलका नगरके राजा गोविन्दकी कन्याके स्वयंवर में ऊपर के तीन वर्गोंवाले पुरुष आये थे ।" जीवंधरकुमारके यह मामा थे । जीवन्बरने चंद्रक यंत्रको वेवकर अपने मामाकी कन्याके साथ पाणिग्रहण किया था । पलत्रदेशके राजाकी कन्याका सर्पविष दूर
१- बुइ० पृ० ५५-५९२ पु० पर्व ७५ श्लो० २९ । ३ - उपु• पर्व ७५ श्लो० ३२०-३२५ ।
४- कन्या वृणीते रुचितं स्वयंवरगतां परं ।
कुलीनमकुलीनं वा क्रमो नास्ति स्वयंत्ररे ॥ हरि० जिनदासकृत |
५- क्षत्रचूडामणिकाव्य लंब १० लो० २३-२४ ।
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