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१२८ ] संक्षिप्त जैन इतिहास । जैन मुनि होगया। ५०० पुत्र भी अपने पिताके साथ मुनि होगये। गर्दभने श्रावकके व्रत ग्रहण किये और वह उडूदेशका राजा हुआ। इसी प्रकार कितने ही अन्य देशोंके रानाओं और भव्य पुरुषोंको सन्मार्गपर लाकर सुधर्मास्वामीने भी मोक्ष प्राप्त किया था। इससमय श्रुतकेवली जम्बूकुमार केवलज्ञानी हुए थे।
छठे गणधर मंडिकपुत्र भी ब्राह्मण वर्णी थे। इनको मंडितठे गणधर पुत्र मौण्ड अथवा मांडव्य भी कहते थे । इनका मण्डिकपुत्र। गोत्र वशिष्ट था और यह मौर्याख्य नामक देशमें जन्मे थे । इनके पिता ब्राह्मण धनदेव और माता विजया थी। इनकी आयु ८३ वर्षकी थी और इन्होंने भगवान महावीरके जीवनकालमें ही मोक्षलाभ किया था। मौर्यपुत्र सातवें गणधर काश्यप गोत्री थे। इनका जन्म स्थान
HT भी मौर्याख्य देशमें था और इनके पिताका नाम मौर्यपुत्र । मौर्यक था। जैन शास्त्र इनको भी ब्राह्मण बतलाते हैं। किन्तु इनकी जन्मभूमि, इनके पिता और इनका नाम 'मौर्यवाची है; जो कुल प्रत्यय नाम प्रगट होता है। उधर मौर्यदेशकी अपेक्षा सम्राट् चन्द्रगुप्तका मौर्यक्षत्री होना प्रगट है । अतः संभव है यह मौर्य पुत्र भी क्षत्री हों। इनका काश्यपगोत्र भी, इसी बातका द्योतक है; क्योंकि उपरान्त के जैन लेखकोंने मौर्योको सूर्यवंशी लिखा है; जिसमें काश्यपगोत्र मिलता है। जो हो, मौर्यपुत्र गणधर एक प्रतिष्ठित पुरुष थे । उनकी मायु ९५ वर्षकी थी और उनका निर्वाण भगवानकी जीवनावस्थामें हुआ था।
१-आक० मा० १ पृ. १८९ । २८-वृजैश० पृ. ७ । ३-वृजेश प्र०।४-क्षत्रीक्लैन्स० २०५। ५-राइ० भा० १ पृ. ६०।-जैश९ पृ. ।'
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